झुंझुनू, आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान व गाँधी जीवन दर्शन समिति सूरजगढ़ के संयोजक वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक कुमार सैनी के नेतृत्व में देश की आजादी के लिए जीवन समर्पित करने वाले क्रांतिवीर भगत सिंह के साथी स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त व महात्मा गाँधी के सिद्धांतों की उन्नति और भारत की आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली पद्म विभूषण से सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी मीरा बेन और संविधान सभा की युवा सदस्य व स्वतंत्रता सेनानी दक्षयानी वेलायुद्धन की पुण्यतिथि मनाई। स्वतंत्रता सेनानियों के छायाचित्रों पर पुष्प अर्पित कर आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को याद किया। वीर तेजाजी विकास संस्थान के अध्यक्ष जगदेव सिंह खरड़िया, धर्मपाल गाँधी, वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक कुमार सैनी, रणवीर सिंह आदि ने स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन संघर्ष के बारे में अवगत करवाया। आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने कहा- भारतीय इतिहास में कुछ ऐसे प्रसंग हैं, जिन्हें पढ़कर आंखें शर्म से झुक जाती हैं। देश की आजादी के लिए अनेक क्रांतिकारियों और महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने अमानवीय यातनाएं सहीं हैं। मगर दुख की बात ये है कि उन्हें आज तक वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे। इसके विपरीत जिन लोगों ने आजादी की लड़ाई में भाग नहीं लिया और देश की आजादी के लिए अपने जीवन में कोई आंदोलन नहीं किया, उन लोगों का महिमामंडन किया जा रहा है। सरकार भी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ भेदभाव कर रही है। बटुकेश्वर दत्त भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। बटुकेश्वर दत्त जिन्होंने 1929 में अपने साथी भगत सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजी सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेम्बली में बम फेंक कर इंक़लाब-ज़िंदाबाद के नारों के साथ ज़िंदगी भर को काला-पानी तस्लीम किया था और वही बटुकेश्वर दत्त जिन्हें इस मृत्युपूजक और मूर्तिपूजक देश ने सिर्फ़ इसलिए भुला दिया, क्योंकि वे आज़ादी के बाद भी ज़िंदा बचे रहे थे। 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों गिरफ्तार हुए और उन पर मुकदमा चलाया गया, इस जुर्म में उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई। सजा सुनाने के बाद इन दोनों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया।
यहां पर भगत सिंह व अन्य क्रान्तिकारियों पर ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ का मुकदमा चलाया गया। जिसमें सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा हुई और बटुकेश्वर दत्त को काले पानी की सजा दी गई। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा भोगने के लिए अंडमान भेज दिया गया। सेल्यूलर जेल में उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। जेल में उन्होंने अमानवीय यातनाएं सहीं, लेकिन कभी माफी नहीं मांगी। सरकार आज माफी मांगने वालों व राष्ट्रीय आंदोलन में भाग नहीं लेने वाले लोगों का महिमामंडन कर रही है और ऐसे क्रांतिवीरों को भुला रही है। अंडमान का एयरपोर्ट स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त के नाम पर होना चाहिए। बटुकेश्वर दत्त की अंतिम इच्छा को सम्मान देते हुए 1965 में उनका अंतिम संस्कार भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के पास किया गया। आजादी के इस सिपाही ने न सिर्फ एक देशभक्त बल्कि एक सच्चे मित्र का भी फर्ज निभाया है। यह देश जितना उनका कर्जदार है, उतना ही गुनहगार भी है। वे तो हमारे बीच नहीं रहें, लेकिन उनकी स्मृति को अपने दिलों में जिन्दा रख हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं। बटुकेश्वर दत्त का त्याग और बलिदान हमेशा इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा। स्वतंत्रता सेनानी मीराबेन के बारे में जानकारी देते हुए धर्मपाल गाँधी ने कहा- मीरा बेन एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी की बेटी थी, उनका मूल नाम मैडलिन स्लेड था। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया। मीरा बेन महात्मा गांधी के नेतृत्व में लड़ी जा रही आजादी की लड़ाई में अंत तक उनकी सहयोगी रहीं। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 9 अगस्त को गांधी जी के साथ उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। आगा खां हिरासत केंद्र में मई, 1944 तक रखा गया। परंतु उन्होंने गांधी जी का साथ नहीं छोड़ा। 1931 के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भी वह महात्मा गांधी के साथ थीं। महात्मा गांधी के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में किये सुधारात्मक और रचनात्मक कार्यों में मीरा बेन की अहम भूमिका थी। वे सेवा बस्तियों और पिछड़े वर्ग के लोगों में जाकर नि:संकोच स्वयं सफाई कार्य करती थीं। बुनियादी शिक्षा, अस्पृश्यता निवारण जैसे कार्यों में गांधी जी के साथ मीराबेन की अहम भूमिका रही है। महात्मा गाँधी की हत्या के बाद भी मीरा उनके विचार और कार्यों के प्रसार में जुटी रहीं, जिसके चलते 1982 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। भारत के प्रति मीरा बेन का लगाव इतना था कि वह भारत को अपना देश और इंगलैंड को विदेश मानती थीं। मीरा बेन के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए ‘इंडियन कोस्ट गार्ड’ ने नए गश्ती पोत का नाम उनके नाम पर रखा है। स्वतंत्रता सेनानी दक्षयानी वेलायुद्धन के बारे में धर्मपाल गाँधी ने बताया कि वह भारतीय राजनीतिज्ञ और उत्पीड़ित वर्गों के नेता थी। वह अनुसूचित जाति की प्रथम स्नातक महिला होने के अलावा प्रथम विधायक और संविधान सभा के लिए चुने जाने वाली एकमात्र दलित महिला थी। पहली और एकमात्र दलित महिला विधायक दक्षयानी वेलायुद्धन को सम्मानित करते हुए केरल सरकार ने ‘दक्षयानी वेलायुद्धन पुरस्कार’ का गठन किया है, जो राज्य में अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने में योगदान देने वाली महिलाओं को दिया जायेगा। पुरस्कार के लिए बजट में 2 करोड़ रुपये रखे गये हैं। कार्यक्रम में देश की प्रथम महिला न्यायाधीश अन्ना चांडी को भी उनकी पुण्यतिथि पर याद किया। अन्ना चांडी ने आजादी से पहले देश की प्रथम महिला न्यायाधीश बनने का गौरव हासिल किया। इस मौके पर गाँधी जीवन दर्शन समिति सूरजगढ़ के संयोजक एडवोकेट दीपक कुमार सैनी, जाट महासभा के अध्यक्ष जगदेव सिंह खरड़िया, रणवीर सिंह ठेकेदार, धर्मपाल गाँधी, राहुल शर्मा, राजेंद्र कुमार, सुनील गांधी, इंद्र सिंह शिल्ला, रवि कुमार, दिनेश, अंजू गांधी, सुरेंद्र आदि अन्य लोग मौजूद रहे।