पत्रकारिता के पुरोधा गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती और स्वतंत्रता सेनानी मृदुला साराभाई की पुण्यतिथि मनाई
सूरजगढ़, राष्ट्रीय साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थान आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में संस्थान के कार्यालय सूरजगढ़ में किसानों के मसीहा चौधरी कुंभाराम आर्य की पुण्यतिथि पर जगदेव सिंह खरड़िया की अध्यक्षता में किसान सभा का आयोजन किया। इस मौके पर पत्रकारिता के पुरोधा, गरीब मजदूर व किसानों की आवाज बुलंद करने वाले प्रताप समाचार पत्र के संपादक, महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती मनाई। आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी, सांप्रदायिक दंगों और विभाजन की त्रासदी में असहाय लोगों की मदद करने वाली महान सामाजिक कार्यकर्ता, कांग्रेस की प्रथम महिला महासचिव भारतीय राजनीतिज्ञ मृदुला साराभाई की पुण्यतिथि भी मनाई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पीसीसी के सदस्य विनोद पूनियां व विशिष्ट अतिथि युवा जाट महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष विजय मील, आर. के. नाहरवाल भिवानी व डॉ. प्रीतम सिंह खुगांई रहे। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता शिक्षाविद् मोतीलाल डिग्रवाल, ओमप्रकाश सेवदा, जगदेव सिंह खरड़िया, विनोद पूनियां, धर्मपाल गांधी, आर.के. नाहरवाल, राजपाल सिंह फोगाट आदि ने किसानों के मसीहा कुंभाराम आर्य, स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी व मृदुला साराभाई के जीवन संघर्ष पर विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विनोद पूनियां व जगदेव सिंह खरड़िया ने सभा को संबोधित करते हुए कहा- चौधरी कुम्भाराम आर्य राजस्थान के उन जननायकों में से थे, जिन्होने जिंदगी भर अन्याय, शोषण और अत्याचार के विरुद्ध तथा गरीबी व किसानों के हितों के लिए संघर्ष किया। वे निडरता व साहस के धनी तथा किसानों के हिमायती व प्रखर वक्ता थे। राजस्थान के किसानों को राजशाही व सामन्तशाही के दमन, शोषण व उत्पीड़न के चक्रव्यूह से बाहर निकालने की मुहिम को गति देने और फिर उन्हें खातेदारी का हक़ दिलाकर उनकी जिंदगी को रोशन करने का श्रेय चौधरी कुम्भाराम आर्य को जाता है। चौधरी कुम्भाराम आर्य में एक सफल संगठनकर्ता, कुशल वक्ता, मौलिक चिंतक, निपुण, निडर व निश्छल नेता, स्वाभिमानी राजनीतिज्ञ एवं कुशल प्रशासक के गुण विद्यमान थे। आज फिर से किसानों को चौधरी कुंभाराम आर्य जैसे नेता की आवश्यकता है। स्वतंत्रता सेनानी मृदुला साराभाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुए धर्मपाल गांधी ने कहा- मृदुला साराभाई ने महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर छोटी सी उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया था।
1930 में मृदुला साराभाई कांग्रेस में शामिल हुईं और कई महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को संभाला। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें कांग्रेस में महामंत्री के पद पर नियुक्त किया। कांग्रेस के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब किसी महिला को महामंत्री के पद पर नियुक्त किया गया था। आज़ादी के संघर्षों में शामिल महिलाओं में मृदुला साराभाई उन लोगों में से हैं, जिन्होंने आज़ादी के पश्चात कोई पद नहीं लिया। एक कार्यकर्ता के रूप में देश की स्वतंत्रता, हिंदू-मुस्लिम एकता, शरणार्थियों के पुर्नवास, अपहरण की गई महिलाओं की खोज, महिलाओं की समानता और मानवाधिकारों के लिए आवाज बुलंद करती रहीं। भारत के विभाजन के अशांत वर्ष के दौरान उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भाव को बहाल करने में सक्रिय नेतृत्व किया। वे गाँधी जी की नोआखाली यात्रा में उनके साथ रहीं। विभाजन की हिंसा के दौरान सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में उनकी भूमिका की भारत और पाकिस्तान के नेताओं ने प्रशंसा की थी। ऐसी महान विभूति को हम नमन करते हैं। स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने कहा- गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद में हुआ था। वे निर्भीक व निष्पक्ष और क्रांतिकारी पत्रकार होने के साथ ही वे एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ थे। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा था। कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऐसे कई पत्रकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। गणेश शंकर विद्यार्थी भी ऐसे ही पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी थी। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर विद्यार्थी जी के विचार बड़े ही निर्भीक होते थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने देशी रियासतों की प्रजा पर किये गये अत्याचारों का भी तीव्र विरोध किया। अपने लेखों और स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर विद्यार्थी जी को पाँच बार जेल जाना पड़ा। एक मामले में तो पंडित मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, श्री कृष्ण मेहता जैसे नामी लोगों ने इनके पक्ष में गवाही दी, लेकिन फिर भी अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें जेल में डाल दिया। उनका छोटा सा जीवन उत्पीड़न और अमानवीयता के खिलाफ निरंतर संघर्ष के रूप में बीता। उन्होंने खुद को इन शब्दों में वर्णित किया था- “मैं दमन और अन्याय के खिलाफ एक सेनानी हूँ, चाहे वो नौकरशाहों, जमींदारों, पूंजीपतियों या उच्च जाति के लोगों द्वारा किया जाए। मैंने जीवन भर अत्याचार के खिलाफ, अमानवीयता के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और ईश्वर मुझे आखिर तक लड़ने की शक्ति दे”। महात्मा गाँधी उनके नेता थे और वे क्रान्तिकारियों के सहयोगी थे।
सरदार भगत सिंह को ‘प्रताप’ से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था। वे कानपुर से क्रांतिकारी समाचार पत्र प्रताप का संपादन करते थे। गणेश शंकर विद्यार्थी ने क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा प्रताप समाचार पत्र में छापी, क्रान्तिकारियों के विचार व लेख प्रताप में निरन्तर छपते रहते थे। सरदार भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फाँसी दी गई थी। उनकी फाँसी के दो दिन बाद कानपुर शहर में हिंदू-मुस्लिम भयंकर दंगे हुए। सांप्रदायिक दंगों के बीच जाकर गणेश शंकर विद्यार्थी ने हजारों लोगों की जान बचाई। लेकिन वे दंगाइयों की एक टुकड़ी में फंस गए। 25 मार्च 1931 को दंगों की आग बुझाते हुए गणेश शंकर विद्यार्थी शहीद हो गये। गणेश शंकर विद्यार्थी आजीवन धार्मिक कट्टरता और उन्माद के खिलाफ आवाज उठाते रहे। यही धार्मिक उन्माद उनकी जिंदगी लील गया। गणेश शंकर विद्यार्थी जितना अपनी कलम से सक्रिय थे, उतना ही वो व्यावहारिक जिंदगी में भी सक्रिय रहे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में पत्रकारिता के पुरोधा गणेश शंकर विद्यार्थी का योगदान अजर-अमर है। कार्यक्रम में पीसीसी के सदस्य विनोद पूनियां, विजय मील, शिक्षाविद् मोतीलाल डिग्रवाल, रामजीलाल फोगाट, ओमप्रकाश सेवदा, समाजसेवी इंद्र सिंह शिल्ला, डॉ. प्रीतम सिंह खुगांई, शिक्षाविद् अशोक शिल्ला, आर.के. नाहरवाल भिवानी, राजपाल सिंह फोगाट, जगदेव सिंह खरड़िया, शिवदान सिंह भालोठिया, सुनील गांधी, रवि कुमार, अंजू गांधी, दिनेश, नरवीर आदि अन्य लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम के अध्यक्ष जगदेव सिंह खरड़िया ने सभी का आभार व्यक्त किया।