लक्ष्मणगढ़, [बाबूलाल सैनी ] खेलों का स्तर सुधारने व खिलाड़ियों को तैयार करने के मकसद से राज्य सरकार ने खेल स्टेडियम के लिए जमीन आवंटित की थी। शुरुआती दौर में राज्य सरकार व जनप्रतिनिधियों की ओर से इसका विकास भी हुआ तथा स्वतंत्र कमेटी भी बनी जो बाद सियासी दांव पेंच में उलझ गई। हालांकि कि इस दौरान स्टेडियम का विकास भी जबरदस्त हुआ लेकिन उपयोग खिलाड़ियों के कम और सियासी तौर पर ज्यादा होने लगा।
स्टेडियम में ट्रैक व खेल ग्राउंड भी बनें जिनमें इंडोर बैडमिंटन मैदान भी तैयार हुआ। शुरुआती दौर में खिलाड़ियों के साथ साथ प्रशासनिक अधिकारी भी बैडमिंटन खेलने को आते रहे तब तक तो सबकुछ ठीक ठाक चला। लेकिन अधिकारियों ने ज्योंहि खेलना बंद कर किया त्यौही मैदान पर बदहाली का आलम छाने लगा। सार संभाल के अभाव में जहां करीब चार पांच लाख की लागत का मैट पूरी तरह खराब होने लगा है वहीं ऊपर से एक साइड से खुला पड़ा होने से कबूतरों का आना जाना लगता है। हालात देखकर यूं लगता है कि कबूतरों का साम्राज्य स्थापित हो गया हो। आखिर खिलाड़ी करें तो करे और खेलने जाएं तो कहां जाकर खेलें?