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भारत रत्न अरूणा आसफ अली की जयंती और स्वतंत्रता सेनानी बेगम अनीस क़िदवई व मिथुबेन पेटिट की पुण्यतिथि मनाई

झुंझुनू, आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत जाट महासभा के अध्यक्ष जगदेव सिंह खरड़िया के नेतृत्व में देश की महिला स्वतंत्रता सेनानियों का स्मरण करते हुए आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में स्वतंत्रता सेनानी भारत रत्न अरूणा आसफ अली की जयंती और स्वतंत्रता सेनानी व महान सामाजिक कार्यकर्ता बेगम अनीस क़िदवई व महात्मा गाँधी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा में भाग लेने वाली स्वतंत्रता सेनानी मिथुबेन पेटिट की पुण्यतिथि मनाई। तीनों महिला स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमाओं पर पुष्प अर्पित कर उनके द्वारा किए गये सार्वजनिक सामाजिक कार्यों व आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को याद किया। प्रयागराज से आदर्श समाज समिति इंडिया महिला इकाई की राष्ट्रीय अध्यक्ष रेनू मिश्रा दीपशिखा, फरीदाबाद से महासचिव कमल धमीजा, दिल्ली से चंद्रमणि मणिका, महाराष्ट्र से संस्थान की ब्रांड एंबेसडर अभिनेत्री श्री मेसवाल, लखनऊ से एडवोकेट अनुजा मिश्रा आदि ने ऑनलाइन कार्यक्रम में शामिल होकर महिला स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने विचार व्यक्त किये। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र सेन, शिक्षाविद् राजपाल फौगाट, जगदेव सिंह खरड़िया, डॉ. प्रीतम सिंह खुगांई व शिक्षाविद् रघुवीर सिंह भाटिया ने भी महिला स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में अपने विचार व्यक्त किये। आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने भारत रत्न अरूणा आसफ अली के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा- स्वतंत्रता सेनानी अरूणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई 1909 को अविभाजित पंजाब के कालका नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने देश की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई आंदोलनों में भाग लिया। महात्मा गांधी के आह्वान पर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अरुणा आसफ अली ने सक्रिय रूप से भाग लिया। जब देश के प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गये तो उन्होंने अद्भुत कौशल का परिचय दिया और 9 अगस्त के दिन मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा झंडा फहराकर अंग्रेजों को देश छोड़ने की खुली चुनौती दे डाली। क्रांतिकारी महिला अरूणा आसफ अली का जीवन उपलब्धियों से भरा हुआ है। अरूणा आसफ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी रहीं हैं। उन्हें दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर होने का गौरव भी हासिल है। अरुणा आसफ अली को सन् 1964 में लेनिन शांति पुरस्कार, 1991 में जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, 1992 में पद्म विभूषण और इंदिरा गाँधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1997 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार बेगम अनीस क़िदवई के बारे में जानकारी देते हुए धर्मपाल गाँधी ने कहा- बेगम अनीस क़िदवई एक लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थी। उन्होंने भारत के खूनी विभाजन को आंखों से देखा और पीड़ितों के पुनर्वास की दिशा में काम किया। विभाजन के समय हुए दंगों में उनके पति का भी बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। सब कुछ खोने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अनीस क़िदवई ने दिल्ली आकर महात्मा गांधी को अपनी दर्द भरी दास्तान सुनाई। विभाजन के समय हुए दंगों से महात्मा गांधी खुद भी टूट चुके थे। उन्होंने अनीस क़िदवई को शरणार्थी कैंपों में जाकर पीड़ितों की मदद करने के लिए कहा। अनीस किदवई ने शरणार्थी कैंपों में जाकर पीड़ितों की जी जान से खिदमत की और बाद में उन्होंने “आजादी की छांव में” एक किताब लिखी, जिसमें भारत विभाजन का दर्द समेटा गया है। बेगम अनीस क़िदवई दो बार 1956 और 1962 में राज्यसभा की सदस्य भी रही है। स्वतंत्रता सेनानी मिथुबेन पेटिट के बारे में जानकारी देते हुए धर्मपाल गाँधी ने बताया कि मिथुबेन का जीवन और मिशन 1930 में गांधीजी के राष्ट्रीय आंदोलन के स्वर्ण युग में शुरू हुआ और 1973 में समाप्त हुआ। उन्होंने अपना जीवन गुजरात के आदिवासी गरीबों, दलितों और वंचितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। गांधीजी का नमक सत्याग्रह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। सरोजिनी नायडू और कस्तूरबा गाँधी के साथ उन्होंने दांडी यात्रा में भाग लिया। अपनी भक्ति और निस्वार्थ सेवा से वह भारत के गरीब लोगों के लिए खुशी, आशा, प्रगति और ज्ञान का स्रोत बन गईं। मिथुबेन पेटिट उन लोगों में से थीं, जिन्होंने देश की आजादी के बाद सत्ता छोड़ दी थी। वह राजनीति से दूर रहीं और गांधीजी के निस्वार्थ सेवा के सिद्धांत का पालन किया। मिथुबेन पेटिट ने मारोली में एक आश्रम स्थापित किया, जिसे कस्तूरबा वनात शाला कहा जाता है। आश्रम में गरीब परिवारों के बच्चों, आदिवासी व हरिजन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए फिशर लोक कताई, कार्डिंग, बुनाई, डेयरी खेती और सिलाई में डिप्लोमा कोर्स पढ़ाया जाता है। उन्होंने मानसिक रूप से बीमार मरीजों के इलाज के लिए उसी नाम का एक अस्पताल भी खोला था। 1961 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 16 जुलाई 1973 को उनकी मृत्यु हो गई। ऐसी महान विभूतियों को हम नमन करते हैं। कार्यक्रम में योगाचार्य डॉ. प्रीतम सिंह खुगांई, इंद्र सिंह शिल्ला भोबियां, राजेंद्र कुमार, रणवीर सिंह ठेकेदार, उम्मेद सिंह शिल्ला, राजेन्द्र सैन, रघुवीर सिंह भाटिया, जगदेव सिंह खरड़िया, धर्मपाल गांधी, राजपाल फोगाट, पिंकी नारनौलिया, सुनील गांधी, दिनेश, अंजू गांधी आदि अन्य लोग मौजूद रहे।

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