बारिश का मौसम शुरू हो चुका हैं| इस मौसम मे पशुओं मे मुख्यतया निम्न रोग अधिक देखे जाते हैं-
फूट-रॉट/ खुर-गलन-
बारिश के पानी मे खड़े रहने से पशुओं के खुर गल जाते हैं| ये जीवाणु जनित रोग हैं जिसमे खुरों मे घाव और अल्सर हो जाते हैं| पशु लंगड़ा कर चलने लगता हैं|
ऐसा होने पर खुरों को लाल दवा के घोल या एंटीसेप्टिक विलयन से धोना चाहिए|
तीन दिवसीय बुखार/ एफीमेरल बुखार-
बारिश के मौसम के बाद होने वाले, वाइरस जनित इस रोग के वाहक मच्छर या रेत-मक्खी होते हैं| नाम के अनुरूप ही इस रोग मे पशु सामान्यतया 3 दिन तक तेज बुखार से पीड़ित रहता हैं| पशु लंगड़ाने लगता हैं और खाना पीना बंद कर देता हैं| कभी कभी पशु काँपने लगता है, पेशीय संकुचन होता हैं, अधिक लार गिरती हैं और जमीन पर लेट जाता हैं|
पशु को सोडियम-सेलिसीलेट देने से राहत मिल सकती हैं|
गलघोटू रोग:-
गलघोटू रोग जीवाणु (पाश्चुरेला मल्टोसीडा) से होता हैं| यह एक संक्रामक रोग है जिसका फैलाव हवा द्वारा, या बीमार पशु के झूठे पशुआहार, पानी और दूषित पदार्थो के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओ में हो सकता है| बछड़ो में बीमार मादा पशु के दूध से हो सकता है| यह रोग लम्बी दूरी की यात्रा से थके पशुओ में भी हो जाता है|
रोग के लक्षण:-
- तेज बुखार (104-107 डिग्री फॉरेनहाइट)
- सूजी हुई लाल आँखे
- मुँह से अधिक लार और आँख-नाक से स्त्रवण
- पशु खाना पीना और जुगाली बंद कर देता है
- पेट दर्द और दस्त
- सिर ,गर्दन या आगे की दोनों टांगो के बीच सूजन
- पशु के श्वास लेते समय घुर्र-घुर्र की आवाज आना
- श्वास लेने में कठिनाई के चलते दम घुटने से पशु की मौत
रोग से बचाव:-
हर साल मानसून से पूर्व ही, 3 माह से बड़े सभी पशुओं का गलघोटू रोग का टीकाकरण जरूर करवाए| पशुओ को लम्बी यात्राओं पर ले जाने से पूर्व भी टिका अवश्य लगवाए| बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओ से दूर रखे|| गलघोटू रोग होते ही बिना देरी किये बीमार पशु का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाए| मृत पशु का निस्तारण गहरा गड्डा खोदकर उसमे चूना या नमक डालकर करे|
लंगड़ा बुखार:-
लंगड़ा-बुखार रोग जीवाणु (क्लोस्ट्रीडियम चौवोई) से होता है| यह एक संक्रामक रोग है जो बीमार पशु से दूषित पशुआहार, के सेवन से हो सकता है| यह रोग खुले घाव द्वारा भी पशुओ में फेल जाता हैं| इस रोग में बीमार पशु के शरीर से मांस पेशियों की मोटी परत वाले भागों जैसे- कंधे, पुट्ठे और गर्दन पर “गैस से भरी सूजन” आ जाती है|
रोग के लक्षण:-
- तेज बुखार (106-108 डिग्री फॉरेनहाइट)
- पशु खाना पीना और जुगाली बंद कर देता है
- बढ़ी हुई श्वास-दर
- लाल आँखे
- शरीर के विभिन्न भागो में जकड़न
- बीमार पशु के शरीर से मांस पेशियों की मोटी परत वाले भागों जैसे- कंधे, पुट्ठे और गर्दन पर “गैस से भरी सूजन” जिसको दबाने पर चट-चट की आवाज होना
- पशु पहले तो लंगड़ाने लगता है फिर चलने में पूर्णतया असमर्थ हो जाता हैं
- अंत में पशु के शरीर का तापमान गिर जाता है और पशु मर जाता हैं
रोग से बचाव:-
हर साल मानसून से पूर्व ही, 3 माह से बड़े सभी पशुओं का लंगड़ा-बुखार रोग का टीकाकरण जरूर करवाए| बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओ से दूर रखे|| लंगड़ा-बुखार रोग होते ही बिना देरी किये बीमार पशु का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाए|
फड़कीया:-
फड़कीया रोग जीवाणु (“क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रीजेंस टाइप-डी”) से होता है| इस रोग को “पल्पी किडनी रोग” भी कहते हैं|
रोग के लक्षण:-
- भेड़-बकरी का चक्कर काटना
- शरीर में ऐंठन आना, कंपकंपी
- सांस लेने में दिक्कत, आफरा आना और दस्त लगना
रोग से बचाव:-
फड़कीया रोग से बचाव हेतु 4 माह से बड़ी भेड़-बकरी का हर वर्ष मानसून से पूर्व टीकाकरण करवा लेना चाहिए| फडकिया रोग हो जाने पर भेड़-बकरी को तुरंत वेटरनरी डॉक्टर को दिखाना चाहिए|
खुजली-
यह रोग बाह्य परजीवी संक्रमण अथवा फंगस के कारण हो सकता हैं| इसमे पशु के बाल झड़ने लगते और पशु दीवार या पेड़ के सहारे अपना शरीर रगड़ने लगता हैं|
पशुओं के आवास की साफ सफाई रखें| पशुओं को सूखी जगह पर बांधे| धूप वाले दिन मे पशुओं को साफ पानी से नहलाएँ|