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थानेदार से उपराष्ट्रपति पद तक, दस रूपये में कहां से कहां तक सफर – एक परिचय

अन्त्योदय के जनक बाबोसा की 96 वीं जयंती

पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरोंसिंह शेखावत “बाबोसा” की जयंती

दांतारामगढ़ [लिखा सिंह सैनी ] राजस्थान के सीकर जिले के दांतारामगढ तहसील के खाचरियावास में ठाकुर देवीसिंह के यहाँ मातासा बन्ने कंवर की कोख से धनतेरस के दिन 23 अक्टूबर 1923 को श्री भैरोंसिंह का जन्म हुआ था । हाई स्कूल पास करने के बाद महाराजा काॅलेज में प्रवेश लिया किन्तु सन् 1942 में पिता की मृत्यु के बाद परिवार का सारा भार आपके ऊपर आ गया और आप काॅलेज नही पढ़ पाये और आपने पुलिस में थानेदार की नौकरी कर ली । आपका विवाह सूरज कंवर के साथ हुआ । देश आजाद होने के बाद आपने नौकरी छोड़ राजनीति में प्रवेश किया । सन् 1952 में प्रथम विधानसभा चुनाव की सभा मोटलावास सती माता के प्रांगण मे हुई थी जो जनसंघ की और से बुलाई गई थी । इस सभा में सबके सामने एक ही प्रश्न था कि दांतारामगढ़ तहसील से कौन चुनाव लड़े । सभा में दांता ठाकुर मदनसिंह व खाचरियावास ठाकुर सुरेंद्रसिंह उपस्थित थे दोनो के विशेष प्रयत्नों से भैरोंसिंह को जनसंघ का उम्मीदवार बनाया गया । उस समय भैरोंसिंह का व्यक्तित्व एक साधारण व्यक्ति का था । उस समय अपनी पत्नी से दस रुपए उधार लेकर प्रथम विधानसभा चुनाव का परचा भरा और दांतारामगढ के प्रथम विधायक बनें । किसे पता था कि यह नौजवान आगे चलकर राज्य का मुख्यमंत्री व देश का उपराष्ट्रपति बनेगा । भैरोंसिंह शेखावत विधानसभा के ऐसे सौभाग्यशाली विधायक थे जिन्होने पहली विधानसभा से लेकर ग्यारहवीं विधानसभा के सदस्य बने रहने का गौरव हासिल किया है। अलबत्ता आपको सन् 1972 में पाँचवी विधानसभा का चुनाव जीतने का अवसर नहीं मिल पाया आपको इस चुनाव मे महारानी ने जानबूझकर हराया और कांग्रेस के जनार्दनसिंह गहलोत को विजय करवाया । आप राजस्थान में सबसे ज्यादा चुनाव जीतने वाले व्यक्ति है । इमरजेंसी लगाए जाने पर आपको 19 माह जेल में रहना पड़ा । 22 जून 1977 में आप पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बनें । सन् 1990 में दूसरी बार और सन् 1993 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनें । इसके बाद आपने अगस्त 2002 में उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ा और आप 149 मतों से विजयी रहे । आपने 22 अगस्त 2002 को उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली और पूरे देश में राजस्थान का मस्तक गर्व से ऊँचा किया। आपने सन् 2007 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा परन्तु विजय नही हो पाये और अस्वस्थ रहने लगे एवं 15 मई 2010 को इस दुनिया को अलविदा कह गए । ऐसे महापुरुष कभी मरते नही अमर हो जाते है। इन दिनों बाबोसा की यादो को फिर से ताजा करने के लिये प्रदेशभर के 200 विधानसभा क्षेत्रों में अन्त्योदय जनयात्रा निकाली जा रही है जो बाबोसा की देन थी। मुझे सन् 2005 में बाबोसा से मेरे द्वारा लिखित दांतारामगढ तहसील स्मारिका का विमोचन कराने का अवसर मिला था ।

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