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हरे चारे का “हे” और “साइलेज” के रूप में संग्रहण

‘हे’: एक परिचय

‘सूखा हरा चारा’ जिसमे शुष्क पदार्थ लगभग 85-90 {44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56},रंग हरा और पत्तियों की अधिक मात्रा हो उसे हे कहते है |’हे’ में नमी की मात्रा 12-14 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए ताकि इसको किण्वन और कवक संक्रमण से बचाया जाकर  सुरक्षित भंडारित किया जा सके| ‘हे’ मुलायम स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है जिसे वर्ष भर पशु चारे के रूप में प्रयोग में लिया जा सकता है|

उच्च गुणवत्ता वाले ‘हे’ की विशेषताएं

  1. उच्च गुणवत्ता वाले हे का निर्माण करने के लिए हरे चारे ,घास या चारा फसल को उसकी पुष्प अवस्था में काटा जाता है जब उसमे अधिकतम पोषक तत्व उपस्थित होते है|
  2. उच्च गुणवत्ता वाले हे में पत्तियों की मात्रा अधिक होती है क्योकि पत्तियों में प्रोटीन , विटामिन और खनिज लवण अधिक मात्रा में होते है|
  3. हे का रंग हरा तथा ये मुलायम स्वादिष्ट पौष्टिक और सुपाच्चय होना चाहिए|
  4. हे में नमी की मात्रा 12-14 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए|

‘हे’ निर्माण हेतु उपयुक्त फसल चयन

डॉ उमेश कुमार प्रजापत

‘हे’ निर्माण हेतु पतले तने की घासें और फलीदार फसलें उपयुक्त रहती है क्योकि इनको सूखने में कम समय लगता है | उदाहरणतया: दूब घास ,सेवण घास, जई ,एम.पी. चरी, रजका, बर्सीम, काऊपी इत्यादि| मोटे तने की फसलों का भी हे बनाया जा सकता है परन्तु उनको सुखाने के लिए पहले छोटे छोटे टुकड़ो में काटा जाकर रोलर के बीच कुचला जाता है|

‘हे’ निर्माण हेतु फसल कटाई का समय

हरे चारे या चारा फसल में जब दो  तिहाई पुष्प अवस्था आ जाती है, उस समय ‘हे’ निर्माण हेतु फसल की कटाई उत्तम रहती है क्योकि इसमे अधिकतम पोषक तत्व उपस्थित होते है और उच्च गुणवत्ता वाली ‘हे’ का निर्माण होता है

‘हे’ निर्माण की विधियाँ

  1. खेत में सुखाकर: यह विधि तब उपयोगी है, जब साफ मौसम हो और आगामी कुछ दिनों में बारिश की संभावना नहीं हो| इस विधि में हरे चारे या चारा फसल को काटकर उसी जगह कुछ घंटे पड़ा रहने देते है, फिर जब नमी की मात्रा कम हो जाती है, तब छोटे ढीले बण्डल बनाये जाते है | अब इन बंडलों को पलट पलट कर इतना सुखाया जाता है की नमी की मात्रा 12-14 फीसदी हो जाये|
  2. हरे चारे को लटका कर सुखाना: साफ मौसम में हरे चारे को लटका कर सुखाया जाता है|

‘हे’ निर्माण की आधुनिक विधियां: जब भी मौसम अनुकूल न हो तब हरे चारे और चारा फसलों को छोटे छोटे टुकड़ो में काटा  जाता है फिर विधुत ताप की गरम हवा द्वारा या छत के नीचे सुखाया जाता हैं

‘हे’ का संग्रहण:

‘हे’ का संग्रहण किसी ऊँचे स्थान पर पानी के भराव से दूर छयादार और सूखे स्थान पर किया जाना चाहिए| अधिक मात्रा में ‘हे’  संग्रहण हेतु मशीनों से बड़े बड़े बण्डल भी बनाये जा सकते है|’हे’ में नमी की मात्रा 12-14 फीसदी से कम रखकर इसको किण्वन और कवक संक्रमण से बचाया जा सकता है | आग से भी विशेष सावधानी बरतनी चाहिए| इस प्रकार ‘हे’ के रूप में मुलायम स्वादिष्ट और पौष्टिक सूखा हरा चारा पशुओ को वर्ष भर उपलब्ध करवाकर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है|

 

साइलेज : एक परिचय

साइलेज हरे चारे के संरक्षण की वह विधि है जिसके अंतर्गत हरे चारे को उसकी रसीली अवस्था में एक गड्ढे में दबाकर सुरक्षित रखा जाता है और तैयार चारे को पशुओ को वर्षभर खिलाया जाता है| साइलेज ख़राब मौसम में भी बनायीं जा सकती है|

वैज्ञानिक ढंग से कहा जाये तो, हरे चारे में उपस्थित शर्करा को अवायवीय परिस्थितियों में जीवाणु किण्वन द्वारा, कार्बनिक अम्ल जैसे लेक्टिक अम्ल में बदला जाता है और इसी लेक्टिक अम्ल में हरा चारा संरक्षित रहता है|

साइलेज के लिए उपयुक्त चारा फसले:-

वे चारा फसले जिनमे घुलनशील कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में होता है, उनमे प्राकृतिक किण्वन अच्छा होने से उन फसलो से अच्छा साइलेज बनता है जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, नेपियर, गिनी घास आदि| अनाज वाली चारा फसले भी साइलेज निर्माण के लिए अच्छी होती है| जिन फसलो में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट कम मात्रा में होता है उनमे 2 – 4{44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} तक शीरा मिलाया जाता है जैसे उष्ण कटिबंधीय घास और दलहन फसले| कभी कभी शीरे के स्थान पर रेशो को पचाने वाले एंजाइम का भी प्रयोग किया जाता है| एंजाइम की मात्रा 4-5 ग्राम प्रति किलोग्राम शुष्कभार आधार पर रखी जाती है| घास चारे से निर्मित साइलेज को अधिक पौष्टिक बनाने के लिए उसमे यूरिया (.5 -1{44d7e8a5cbfd7fbf50b2f42071b88e8c5c0364c8b0c9ec50d635256cec1b7b56} )मिलाया जा सकता है|

साइलेज निर्माण की विधि:-

अच्छा साइलेज बनाने के लिए जब चारा फसलो में 50 फीसदी फूल आ जाये और नमी की मात्रा 65 -70 फीसदी (शुष्क भार 30 -35 फीसदी) हो तब काटा जाना चाहिए| मक्का ज्वार जई आदि अनाज फसलों को दूधिया होने पर काटा जा सकता है| साइलेज बनाने के लिए चारा फसलो को शाम में समय में काटा जाता है, जिससे रात में नमी कम होकर घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा भी बढ़ जाती है| इसके बाद चारा फसलो को कुट्टी किया जाता है जिससे अधिक आसानी से चारा भरा जा सके और लैक्टिक अम्ल जीवाणु उत्पन्न करने के लिए अधिक रस उत्पन्न हो सके| अब कुट्टी किये गये चारे को साइलेज-बेग्स (प्लास्टिक बैग्स या रिपोल पोलीप्रोपिलिन के बने) या साइलो-गड्ढे में अच्छी तरह भरकर दबाते है, जिससे की हवा बाहर आ सके और प्राकृतिक किण्वन शुरू हो सके| अब इन साइलेज-बेग्स या साइलो-गड्ढे को प्लास्टिक से अच्छी तरह बंद करके 30-40 दिनों के लिए रखा जाता है| एक घन मीटर के गड्ढे में लगभग 400-500 किलोग्राम साइलेज बनता है| यदि एक स्वस्थ पशु को 15 किलोग्राम साइलेज प्रतिदिन खिलाया जाये तो उसे एक माह खिलने हेतु 1 घन मीटर गड्ढा होना चाहिए|

पशुओ के लिए साइलेज खिलाने की निर्धारित मात्रा

गाय : 16 -20 किलोग्राम प्रतिदिन प्रति पशु

बैल : 10-14 किलोग्राम प्रतिदिन प्रति पशु

बछडा : 0.5 से 2 किलोग्राम प्रतिदिन प्रति पशु

भैंस : 20-22 किलोग्राम प्रतिदिन प्रति पशु

नोट:- साइलेज को दूध दुहने के बाद खिलाया जाना चाहिए ताकि दूध में साइलेज की गंध को रोका जा सके|

साइलेज विधि से हरा  चारा संरक्षण के लाभ

  1. साइलेज विधि में अन्य संरक्षण विधियों की तुलना में पोषक तत्वों की हानि कम होती है|
  2. सूखे और अकाल के समय भी रसदार चारा वर्षभर उपलब्ध रहता है|
  3. साइलेज में आग लगने का खतरा नहीं रहता|

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