स्थानीय लोक संस्कृति शोध संस्थान नगर श्री में पंडित कुज विहरी शर्मा स्मृति 130वीं साहित्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। सचिव ने बताया कि काव्य कलश के अन्तर्गत दो नवोदित साहित्यकार बाबू खां ‘नूर’ व नीरज गौड़ ने अपनी प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता बनवारीलाल शर्मा ‘खामोश’ ने की विशिष्ट अतिथि मोहम्मद इदरीस खत्री ‘राज’ थे। मां सरस्वती व पं. कुजविहारी शर्मा के चित्रों के सम्मुख दीप प्रज्वलन से प्रारंभ हुए कार्यक्रम में शाइर बाबू खां नूर ने अपना रौचक आत्मकथ्य प्रस्तुत करते हुए अपनी रचनाओं की प्रस्तुती दी। उन्होंने याद में तेरी सनम हाल मेरा हो गया…, रात भर रोया बहुत रोते-रोते सो गया…, मेरी किस्ती भी तू मेरा साहिल भी तू…, बुढ़ापे में वो रोया लिपटकर आज बेटी से…, तू चेहरे से चिलमन हटाकर तो देख… जरा नजरे मिलाकर तो देख…, खुद को इतना भी ना सताया कर, सर्द रात है तसव्वुर में इतना न आया कर…, तेरी याद में यूंही रोता रहेगा.. मेरे दिल का दामन भिगोता रहूंगा…, सियासत में किसका असर आ गया, कि दहशत में हर एक बसर आ गया… अभी कुछ देर ठहरो तुम.., अभी कुछ रात बाकी है…आदि गजले सुनाकर खूब समां बांधा श्रोताओं ने खूब दाद दी। दूसरे नवोदित कवि नीरज गौड़ ने राजस्थानी व हिन्दी की मिश्रीत रचनाओं-देखो रै म्हारै म्हाटी कै होरी है…, सोचो समझो फेर मूंह खोलो…, तोल-तोल कर हर शब्द बोलो…, म्हे घराकां मोहनसिंह दुनिया म्हारै पर धिगाणैही चहुं होरी है…, एबीसी के युग में संस्कारों को बदल देखा…, कविताओं के बाद लख चौरासी जूण… व मनमौजी राम क्यानै डोलै छ आंको बांको… भजन सुनाये जो श्रोताओं को खूब मन भाये व वाह-वाह से नवाजा। चर्चा सत्र में बाबूलाल शर्मा, विजयकांत शर्मा ने दोनों रचनाकारों की प्रस्तुतियों पर अपनी विश्लेषणात्मक टिप्पणी की। उदयसिंह ने दो गजले प्रस्तुत की। विशिष्ट अतिथि मो. इदरीस खत्री राज ने उद्बोधन दिया व बनवारीलाल शर्मा खामोश ने रचनाकारों को रचनाधर्मिता संबंधी सूझाव दिये। संचालन रमेश सोनी ने किया।