खेत-खलियानलेखसीकर

भेड़ पालन – वैज्ञानिक प्रबंधन

पशुगणना 2012 के अनुसार राजस्थान में लगभग 90 लाख भेड़े हैं| राजस्थान में पाई जाने वाली भेड़ों की मुख्य नस्लों में चोकला, मगरा, नाली, सोनाडी, मारवाड़ी, मालपुरा और जैसलमेरी प्रमुख हैं| भेड़ पालन के लिए सबसे महत्वपूर्ण बिंदु हैं-

चारागाह का विकास:- भेड़े मुख्यतया चारागाह में चराई पर पाली जाती हैं| चारागाह में वर्षभर पोष्टिक और हरे चारे की व्यवस्था की जानी चाहिए| चारागाह में सीवन, धामन, अंजन और भंरुट घास, झाड़ीदार पौधे, हरा चारा जैसे बाजरा, ज्वार, हाइब्रिड नेपियर के अतिरिक्त फलीदार हरा चारा रिजका, बरसीम और लोबिया इत्यादी उगाया जा सकता हैं| चारागाह के चारो तरफ कांटेदार तार या कांटेदार झाड़ियों से बाड़ बना दी जानी चाहिए|

                डॉ. विक्रम जीत कुल्हरी

आवासीय व्यवस्था:- भेड़ो के लिए सस्ता, छायादार और सुरक्षित आवास बनाया जाना चाहिए| बाड़े की छत घास-फूस, टिन की चद्दरो अथवा एस्बेस्टस शीट की बनाई जा सकती हैं| बाड़े की छत अगर कंक्रीट या टीनशेड की बनी हो तो उस पर 5-6 इंच मोटी घास की परत अथवा नीचे कार्ड-बोर्ड/ गत्ते की परत बना देने से आवास ठंडा बना रहता है| चारो तरफ की दीवारे गारे-कच्ची ईंटो से बनाई जा सकती हैं| बाड़े का फर्श हल्का ढ़लानदार होना चाहिए ताकि मल-मूत्र बहकर नीचे चला जाये तथा सफाई में भी आसानी रहे|

प्रजनन हेतु नर मेंढे का चयन:- भेड़ो के समूह में जिन मेढ़ों को प्रजनन हेतु रखा जाना हैं उनका चयन सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए| श्रेष्ठ नस्ल के मेढ़ों का ही चयन किया जाना चाहिए| प्रति 30 वयस्क मादा भेड़ो के लिए 1 मेंढा रखा जाना चाहिए| मेढ़ा स्वस्थ और फुर्तीला होना चाहिए जिसकी उम्र 2-3 वर्ष हो| मेढ़ों को संतुलित आहार दिया जाना चाहिए| हरे चारे के साथ ही 250-300 ग्राम दाना मिश्रण भी दिया जाना उपयुक्त रहता हैं| मिनरल मिक्सचर और नमक भी डालना चाहिए|  मेढ़े को प्रजनन सम्बंधित कोई भी बीमारी नही होनी चाहिए|

वयस्क भेड़ को प्रजनन हेतु तैयार करना:- सामान्यतया भेड़ 1.5- 2 वर्ष की उम्र तक प्रजनन योग्य हो जाती हैं| भेड़ो को प्रजनन काल में पौष्टिक आहार देना चाहिए| चारागाह में चराने के अलावा हरा चारा, दाना-मिश्रण, संपूरक आहार दिया जाना चाहिए| मिनरल मिक्सचर, नमक अवश्य देना चाहिए| प्रजनन काल से 2-3 सप्ताह पूर्व भेड़ो को अतिरिक्त दाना-मिश्रण देने से जुड़वाँ-मेमने होने की संभावना बढ़ जाती है, अतिरिक्त आहार देने की विधि “फ्लशिंग” कहलाती हैं| गर्भित होने से पहले ही कृमिनाशन और टीकाकरण करवाना चाहिए|

गर्भित भेड़ का आहार और देखभाल:- भेड़ में गर्भावधि लगभग 5 माह की होती है| गर्भित भेड़ को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती हैं| बाड़े में अन्य भेड़ो से अलग रखा जाना चाहिए| बिछावन मुलायम और सुखी होनी चाहिए| आहार सुपाच्य और संतुलित होना चाहिए| चराई के अतिरिक्त हरा चारा, दाना-मिश्रण, नमक और मिनरल मिक्सचर देना सही रहता हैं| भेड़ो को सूखे चारे में मूंगफली का चारा, बेरी-पाला, खेजड़ी-लूंग जबकि हरे चारे में रिजका, बरसीम, लोबिया तथा दाना मिश्रण में खल, चापड, चूरी, दलीया एवं गुड दिया जा सकता हैं|

नवजात मेमनों की देखभाल:- नवजात मेमनों के जन्म लेते ही उनके नाक-मुंह में जमा चिकने म्यूकस को निकाल देवे| आवश्यकता होने पर कृत्रिम श्वसन दिया जा सकता हैं| नाभि से लगभग 1 इंच की दूरी से नई ब्लेड द्वारा प्लेसेंटा अथार्त नाभि नाल को काट देवे और रुई का फोहा बनाकर टिंचर आयोडीन या अन्य कोई एंटीसेप्टिक लगा देवे| पैदा होने के कुछ घंटो के भीतर ही नवजात को खीस अवश्य पिलाये| खीस अत्यंत पौष्टिक होता हैं| मेमनों को 3-3.5 माह की उम्र होने तक उनकी माँ का दूध देना लाभदायक रहता है| मेमनों की उम्र 3 माह होने तक हर माह कृमिनाशन करवाया जाना चाहिए, जबकि 3 माह के बाद हर 2-3 माह में कृमिनाशन करवाना चाहिए| 2-3 सप्ताह की उम्र होने तक अवांछित नस्ल के मेमनों का बधियाकरण किया जाना चाहिए| 1 माह की उम्र के मेमनों को चरने हेतु चारागाह ले जाना शुरू किया जा सकता हैं, एवं उनके शारीरिक भार के अनुसार दाना-मिश्रण दिया जा सकता हैं| अत्यधिक सर्दी में मेमनों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए वरना श्वसन रोग जैसे न्यूमोनिया हो सकता हैं|

भेड़ से मांस एवं ऊन उत्पादन:- भेड़ पालन से मांस और ऊन प्राप्त की जाती हैं| भेड़ का मांस मटन कहलाता हैं| राजस्थान का ऊन उत्पादन में देश में प्रथम स्थान हैं| वर्ष 2016-17 में कुल 14.3 मिलियन किलो ऊन उत्पादन हुआ|

ऊन की कतरन:- ऊन कतरने से कुछ दिन पहले, तेज धूप वाले दिन भेड़ो को “डिपिंग विलयन” में नहला लेना चाहिए ताकि ऊन पर लगी गंदगी और बाह्य परजीवी साफ हो जाये| ऊन कतरने के बाद उसको गुणवत्ता के आधार पर अलग अलग गठरियों में भरकर इक्कठा करना चाहिए साथ ही उपयुक्त तापमान और नमी पर भण्डारण किया जाना चाहिए|

टीकाकरण एवं कृमिनाशन:- भेड़ों का हर तीन माह में कृमिनाशन एवं मानसून पूर्व टिकाकरण करवाना अत्यंत जरुरी हैं|

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