चिड़ावा[अतुल अग्रवाल ] खुदा के कहर पर तो किसी का बस नहीं है लेकिन उसके नेक बन्दों की भी किसी असहाय पर मेहर ना हो तो पीड़ा उत्पन्न होती है।ऐसा ही एक मामला पीर की नगरी नरहड़ के वार्ड न 11 में देखने को मिला है। इस पीर की नगरी में पीड़ित की पीड़ा किसी को भी दिखाई नही पड़ रही है। बारिश के रूप में आसमान से ऐसा कहर बरपा की सर से छत भी जाती रही। आई होगी बारिश खुशियों का पैगाम लेकर लेकिन नरहड़ की शकीला का घरौंदा तो उसने मिट्टी में मिला दिया। जीवन की कठिन सफर पर शकीला के पति ने तो कब का साथ छोड़ दिया था। अपनी तीन लड़कियों का पेट वो जैसे तैसे करके मेहनत मजदूरी करके या बूंदी बांधकर भर रही थी। लेकिन इस मजलूम पर खुदा का कहर बारिश बनकर ऐसा बरसा की शकीला का आशियाना भी गिर गया। शकीला ने जहा मुनासिब समझा वहा वहा पर उसने मदद के लिए दस्तक दी लेकिन किसी से भी उसको मदद नहीं मिली और कही से मिली तो वो भी ऊंट के मुँह में जीरा ही साबित हुई। सरकार द्वारा गरीबो के लिए अनेक योजनाए चलाई जा रही है। लेकिन पात्र व्यक्ति को उसका लाभ नहीं मिल पाता है। मजे की बात तो ये है विकट परिस्थितियों में गुजर बसर करने वाली शकीला का आज तक बीपीएल कार्ड भी नहीं बन पाया है।