एक तरफ सरकारे बड़ी-बड़ी योजनाएं लाती हैं और जन कल्याण के लिए अपने को समर्पित दिखाती हैं वही झुंझुनू जिले के इस्लामपुर कस्बे के मानसिक रूप से विक्षिप्त लीलाधर कुमावत को देखकर लगता है कि हमारी सरकारें किसी गुमान में है। जी हां इस्लामपुर के मानसिक रूप से विक्षिप्त लीलाधर कुमावत को नरकीय जीवन व्यतीत करते हुए देखते तो ऐसा ही लगता है। दो तिरछी रखी हुई टिन शेड के नीचे मैली कुचली गुदड़ी में सर्दी के सितम,गर्मी की मार को सहता हुआ जीवन व्यतीत कर रहा है लीलाधर, यह कहना भी अतिश्योक्ति होगी क्योकि इससे बुरे तो इसके लिए शायद नारकीय हालात भी नहीं होंगे। गौरतलब है कि स्थानीय लोगों एवं लीलाधर के पुत्र के अनुसार लीलाधर पिछले 20-25 सालों से मानसिक रूप से विक्षप्त की तरह अपना गुजर बसर कर रहा है उसकी दिमागी स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह या तो खानाबदोश की तरह घूमता रहता है या इन टीन शैड के नीचे पड़ा रहता है इसकी स्थिति इतनी बदतर है कि आप भयंकर बदबू के कारण इसके पास से गुजर भी नहीं सकते। इसके बेटे ने बताया कि हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर है जिसके कारण से वह न तो इसका इलाज कराने में सक्षम है और न ही इसकी देखभाल कर पाता है। उसने बताया कि घर के नाम पर उनके पास सिर्फ एक पुराना कमरा है जिसके चलते इनको टीन शैड में रखा गया है। अभी तक इनका ना तो कोई बीपीएल कार्ड बना है ना घर के अंदर बिजली- पानी के कनेक्शन है। यहां तक की लीलाधर के हिस्से में कोई शौचालय भी नहीं है जिसके चलते कई बार शौच जैसी क्रियाएं भी वह कपड़ो में ही कर देता है शायद लगता है कि इसके चलते ही वह अपने ही परिवार में उपेक्षा का शिकार भी बना हुआ है। वही आस पड़ोस के लोगों ने बताया कि इसकी स्थिति काफी दयनीय है तथा पास से गुजरने पर भी जी घबराता है। वही बिजली, पानी, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित इस परिवार के पास बीपीएल कार्ड भी न होना हमारी व्यवस्थाओ के क्रियान्वन पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है। मानवधिकारों के युग में यह व्यक्ति पाश्विक जीवन से भी नीचे का जीवन बसर कर रहा है। जिसके चलते बरबस ही मुँह से निकल जाता है न जाने किस गुमान में है हमारी सरकारें।