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स्वतंत्रता सेनानी नरहरि पारीख और क्रांतिकारी दुर्गावती देवी की जयंती मनाई

गुरु गोविंद सिंह व स्वतंत्रता सेनानी के. केलप्पन की पुण्यतिथि पर किया नमन

सूरजगढ़, काजड़ा में आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में स्वाधीनता आंदोलन में महात्मा गाँधी के सहयोगी रहे स्वतंत्रता सेनानी नरहरि पारीख और क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह की सहयोगी रही क्रांतिकारी महिला दुर्गा भाभी के नाम से विख्यात स्वतंत्रता सेनानी दुर्गावती देवी की जयंती मनाई। इस मौके पर सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह व प्रथम लोकसभा के सदस्य राष्ट्रवादी नेता, महान समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी के. केलप्पन को उनकी पुण्यतिथि पर नमन किया। स्वतंत्रता सेनानी नरहरि पारीख व दुर्गावती देवी उर्फ दुर्गा भाभी के छायाचित्रों पर पुष्प अर्पित करते हुए स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को याद किया। इस मौके पर काजड़ा सरपंच मंजू तंवर, आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी, शिक्षाविद् व सामाजिक कार्यकर्ता मनजीत सिंह तंवर, जगदीश प्रसाद सैन, अनिल जांगिड़, प्रताप सिंह तंवर, सरजीत खाटीवाल, अशोक कुमावत, नरेंद्र बुडानिया, माया कुमावत, विक्रम नारनौलिया, सुरेंद्र धतरवाल, करण सिंह पूनियां, कपिल गुर्जर, होशियार सिंह सिंगाठिया, राय सिंह शेखावत, सुमन मेघवाल, अभिलाषा मान, बबीता शिल्ला, पूजा स्वामी, मंजू कुमावत, पूजा शर्मा, राकेश पूनियां, धर्मेंद्र सिंह शेखावत, निखिल तंवर आदि अन्य लोग मौजूद रहे। धर्मपाल गाँधी ने बताया कि शिक्षाविद्, लेखक, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी नरहरि पारिख का जन्म 7 अक्टूबर 1891 को अहमदाबाद में हुआ था। उन्होंने महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया और अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित किया। वे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के निकट सहयोगी थे। महात्मा गाँधी ने अपनी वसीयत में महादेव देसाई और नरहरि पारीख को अपना ट्रस्टी नियुक्त किया था। वर्ष 1937 में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल बनने पर नरहरि पारीख को बुनियादी शिक्षा बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त बनाया गया। नरहरि पारीख को एक अच्छे लेखक के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने कई जीवनियाँ भी लिखी थीं। सरपंच मंजू मनजीत सिंह तंवर ने कहा- स्वतंत्रता संग्राम की जब भी बात चलती है तो सबसे पहले महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों का नाम सबसे पहले लिया जाता है। दुर्गावती देवी इन्हीं महान क्रांतिकारियों की सहयोगी थी और क्रांतिकारी शहीद भगवती चरण वोहरा की पत्नी थी। सभी क्रांतिकारी उन्हें दुर्गा भाभी के नाम से पुकारते थे। दुर्गावती देवी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद में हुआ था और उनकी शादी 12 वर्ष की उम्र में लाहौर के भगवती चरण वोहरा के साथ हुई थी। स्वाधीनता सेनानी भगवती चरण वोहरा की पत्नी और दुर्गा भाभी के नाम से मशहूर इस देशभक्त महिला की हिम्मत और आजादी के प्रति दीवानगी अद्भुत थी।

आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने दुर्गावती देवी के क्रांतिकारी जीवन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 1928 में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाठी-चार्ज में जब ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई तो 10 दिसंबर 1928 को लाहौर में क्रांतिकारियों की एक बैठक बुलाई गई, जिसकी अध्यक्षता दुर्गावती देवी ने की। इसी बैठक में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने का फैसला लिया गया था। 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने शाम 4 बजे अंग्रेज़ अधिकारी सांडर्स को जान से मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया। लेकिन इस घटना के बाद भगत सिंह और उनके साथियों का लाहौर से बचकर निकलना मुश्किल हो गया। इस संकट की घड़ी में दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारियों का साथ दिया। 20 दिसंबर 1928 को दुर्गा भाभी ने भगत सिंह की पत्नी बनकर लाहौर से कलकत्ता तक ट्रेन का सफर किया और राजगुरु सहित सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश पुलिस से बचाया। दुर्गा भाभी ने हर कदम पर क्रांतिकारियों का साथ दिया। 28 मई 1930 को क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा वीरगति को प्राप्त हो गये लेकिन इसके बाद भी दुर्गा भाभी का हौसला कम नहीं हुआ। जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा सुनाई तो अपने क्रांतिकारी साथियों को बचाने के लिए दुर्गा भाभी ने अपने गहने बेच दिये। चंद्रशेखर आजाद के सुझाव पर क्रांतिकारी सुशीला दीदी को साथ लेकर दिल्ली में महात्मा गाँधी से भी मुलाकात की। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को बचाने के लिए दुर्गा भाभी का प्रयास साहसिक और सराहनीय था। दुर्गा देवी अपने क्रांतिकारी संगठन के लिए हथियारों का इंतजाम करने में अहम भूमिका निभाती थी। उन्होंने 9 अक्टूबर 1930 को गवर्नर हैली पर गोली चलाई थी।ऐसी बहादुर महिला को हम नमन करते हैं।

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