चिकित्सालेखसीकर

रेगीस्तान रा जहाज री- चिकित्सा चर्चा एवं आहार रो प्रबंधन

डॉ. योगेश आर्य, नीम का थाना (सीकर)

देश में ऊंटों की संख्या में राजस्थान प्रथम स्थान पर है| 19वीं पशुगणना के अनुसार राजस्थान में लगभग 3.25 लाख ऊँट हैं| “रेगिस्तान का जहाज” कहलाने वाला ये पशु कैसी भी विकट परिस्थितियों में जिंदा रह सकता हैं| 30 जून 2014 को राजस्थान सरकार ने ऊंटों के संरक्षण के लिए ऊँट को राज्य-पशु का दर्जा दिया है, साथ ही ऊंटों में प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए “उष्ट्र प्रजनन प्रोत्साहन योजना” के अंतर्गत ऊंटनी के ब्याने पर तीन किश्तों में कुल 10,000 रूपये की आर्थिक सहायता दी जाती हैं| ऊंटनी के दूध का औषधीय महत्त्व होता हैं, इसका उपयोग मधुमेह, दमा, पीलिया, तपेदिक और एनीमिया में लाभदायक बताया गया हैं| ऊँटपालन को बढ़ावा देने के लिए प्रतिवर्ष बीकानेर में “ऊँट महोत्सव” का आयोजन होता है जिसमें ऊँट की सजावट, बाल कतरन डिजाइन और ऊँट नृत्य के लिए पुरस्कार दिए जाते हैं|

ऊंट को दिया जाने वाला आहार एवं प्रबंधन:-

ऊंटों को रोगों से बचाने के लिए संतुलित एवं पोष्टिक आहार दिया जाना चाहिए| सान्द्र आहार में 2 प्रतिशत मिनरल मिक्सचर भी मिलाना चाहिए| मटर का भूसा, मूंग-मोठं और ग्वार चारा, सरसों एवं तारामीरा इत्यादि खिलाया जाता हैं| इसके अलावा मक्का, जई, बाजरा, जौ, बिनौला, गेंहू की चोकर एवं पिसे हए चने के साथ आहार में नमक आवश्यक रूप से मिलाना चाहिए| ऊँट को प्रतिदिन 20-40 लीटर पीने का साफ दिया जाना चाहिए| ऊँट के आवास की साफ सफाई की जानी चाहिए| हर 3 माह के अन्तराल पर कृमिनाशन करवाया जाना चाहिए|

ऊंटों में वैसे तो बहुत सारे रोग होते हैं परन्तु मुख्यतया इन दो रोगों का जिक्र करना अतिआवश्यक हैं-

-:सर्रा रोग:-

सर्रा रोग को ‘तिबरसा’ और ‘गलत्या’ नाम से भी जाना जाता हैं| यह रोग रक्त परजीवी “ट्रिपेनोसोमा इवांसाई” से होता हैं| यह परजीवी, रक्त चूसने वाली मक्खी ‘टेबेनस’ के काटने से फेलता है| इस रोग के प्रमुख लक्षणों में बुखार, एनीमिया और दुर्बलता प्रमुख है| लम्बे समय तक चलने वाली इस बीमारी में कूबड़ भी गायब हो जाता है और जांघ की पेशियों का भी अपक्षय होता हैं| कभी कभी ऊँट के पुरे शरीर पर सूजन आ जाती है एवं कॉर्निया अपारदर्शी हो जाती हैं|

ऊँट में सर्रा रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत वेटरनरी डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए| वेटरनरी डॉक्टर की सलाह पर प्रयोगशाला में ताजा रक्त के नमूने अथवा रक्त स्मीयर की ‘जीम्सा स्टेंनिंग’ करके  शुक्ष्मदर्शी में परजीवी की उपस्थिति सुनिश्चित की जाती हैं| सर्रा रोग की पहचान होते ही वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाना चाहिए| राजस्थान सरकार ने भी “सर्रा नियंत्रण कार्यक्रम” चला रखा हैं|

सर्रा से बचाव के तरीके-

  • ऊँट के आवास की साफ सफाई रखी जानी चाहिए तथा ऊँट को मख्खियों मुख्यतः टेबेनस मक्खी से बचाना चाहिए| कीटनाशक का छिडकाव करना चाहिए|
  • सर्रा रोग बाहुल्य क्षेत्रों में वेटरनरी डॉक्टर की सलाह पर ‘एंट्रीसाइड प्रोसाल्ट’ इंजेक्शन लगाकर भी ऊंटों को सर्रा रोग से बचाया जा सकता हैं|

-:मेन्ज अथवा खाज:-

ऊंटों में मेन्ज का रोगकारक “सार्कोपटीज केमेली” होती हैं| ये रोग ज्यादातर सर्दियों में होता है| रोग ग्रसित भाग के बाल उड़ जाते हैं, चमड़ी काली पड जाती हैं और ऊँट अपने शरीर को किसी दिवार से रगड़ता है|

मेन्ज रोग की पहचान के लिए प्रयोगशाला में रोग ग्रसित भाग की, त्वचा की खुरचन को 10 प्रतिशत पोटेशियम हाइड्रोक्साइड विलयन में 24 घंटे रखकर उसके पश्चात् शुक्ष्मदर्शी में सार्कोपटीज माईट की उपस्थिति देखी जाती हैं|

रोग के उपचार के लिए वेटरनरी डॉक्टर की सलाह पर 0.25 से 0.75 प्रतिशत “सुमीथिओन” विलयन का स्प्रे पम्प से पहले दिन शरीर के आधे भाग पर और दुसरे दिन शेष आधे भाग पर छिडकाव किया जाता है|

मेन्ज से बचाव के तरीके-

  • ऊँट के शरीर की साफ सफाई रखी जानी चाहिए
  • वेटरनरी डॉक्टर की सलाह पर ‘आईवरमेक्टिन’ इंजेक्शन लगाया जा सकता है, जिससे अन्तः और बाह्य परजीवी दोनों से बचाव हो जायेगा|

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