साभार- डॉ. निकिता चौधरी, बी.ए.एम.एस.
संकलन- हिमांशु सिंह, जिला जनसंपर्क अधिकारी, झुंझुनूं
झुंझुनूं, गर्मी का मौसम आ गया है, ऐसे में हमें अपनी सेहत के लिए बेहद सावधान रहना आवश्यक है। आयुर्वेद में प्रत्येक ऋतु में रहन-सहन और दिनचर्या के व्यवस्थित नियम तय किए गए हैं, जिसे ऋतुचर्या बोलते हैं। बी.ए.एम.एस. डॉ. निकिता चौधरी ने बताया कि चरक संहिता के अनुसार जो व्यक्ति ऋतु के अनुरूप अनुकूल आहार-विहार की जानकारी रखते हुए तदनुसार आचरण करता है उसके बल और गुणों की वृद्धि होती है। सामान्यतः ज्येष्ठ, आषाढ़ मध्य मई से जुलाई तक का समय ग्रीष्म ऋतु के अन्तर्गत आता है। इस काल में सूर्य की किरणें और वायु अत्यन्त तीखी, रुखी और गर्म होती है जिससे सौम्य गुणों में कमी आ जाती है, इंसान की शक्ति कम हो जाती है वात दोष का संचय होता है एवं अग्नि मध्यम कफ का क्षय होने लगता है। ग्रीष्म ऋतु के इस प्रभाव को ध्यान में रखतें हुए हमें हितकारी आहार-विहार का पालन करना चाहिए, जिससे कुछेक मौसमी बीमारियों से स्वतः बचा जा सकता है। ग्रीष्म ऋतु में लू लगना, रुखापन, दौर्बल्य, खसरा, हैजा, उल्टी, दस्त, नकसीर, पीलिया, यकृत विकार आदि के होनें की संभावना बढ़ जाती है।
गर्मी में क्या नहीं करें :
गर्मी में लवण रस, कटु रस, अम्ल रस प्रधान चीजें कम लेनी चाहिए, क्योंकि ये सब पित को बढाते है। साथ ही तला भूना खाना, पैकेट बन्द सामान, नमकीन भी कम से कम खाऐ। रसोई में उपयोगी गरम मसाले भी कम से कम उपयोग करें। इसके अलावा दही का उपयोग भी आयुर्वेदानुसार, ग्रीष्म ऋतु में नहीं करना चाहिए, क्योंकि दही उष्ण तथा अभिष्यन्दी होता है। इसकी जगह आप ताजा छाछ का उपयोग भुना जीरा, पुदीना डालकर कर सकतें हैं। फ्रिज में रखा पानी, कोल्डड्रिंक्स आदि का उपयोग भी ना करें, यथासंभव पानी मटके का ही पीएं। चाय, काँफी का उपयोग भी कम से कम करें। गर्मी में अत्यधिक व्यायाम, परिश्रम, मैथुन आदि भी वर्जित हैं। तेल से युक्त चींजे ज्यादा ना लें । हरे पत्ते वाली सब्जियां जैसे मैथी, सरसों के पते कम उपयोग में ले क्योंकि ये पित्त दोष को बढाती है।
गर्मी के मौसम में क्या करें:
गर्मी में शरीर पर चंदन आदि शीतल लेप लगाना, पुष्पमाला, धारण कर पतले व हल्के सूती वस्त्रों का धारण करना तथा शीतल गृह में निवास करना चाहिए। सूर्योदय से पहले उठना तथा उषापान हितकर है। गर्मी में पाचन क्रिया सुचारु हो इसके लिए पानी की ज्यादा मात्रा में जरुरत होती है, अतः भरपूर पानी पीएं, जिससे शरीर में वात व पित दोष कुपित न हों। इसके अलावा सुबह टहलना, दो बार स्नान भी हितकर है। दिन में सोना भी इस मौसम में लाभदायक है। धूप में निकलें तो सिर ढककर निकलना चाहिए। गर्मी में आहार ऐसा लें, जो मधुर रस युक्त लघु स्निग्ध, शीतल व द्रवांश से भरपूर हो। शालिचावल, मधुर शीत द्रवान्न, नारियल जल, द्राक्षाजल, दुग्ध, गाय का घृत आदि का सेवन भी हितकर है। कैरी का पने का उपयोग भी गर्मी से बचने के लिए कर सकते हैं। चावल का सेवन, मूंग की दाल का सेवन हितकर है, लेकिन जहां तक संभव हो ये प्रेशर कूकर में ना पकाकर, पतीले पर ही पकाकर खाऐं। सब्जियों में लौकी, खीरा, परवल, ककडी, कुष्माण्ड आदि का सेवन भरपूर करें। इस मौसम में घी का प्रयोग जरुर करें क्योंकि घी वात व पित्त शामक तथा शरीर में उष्णता को कम करने में बहुत उपयोगी है। सब्जियों में छोंक के लिए भी हम घी का उपयोग कर सकते हैं खाने का पाचन भी अच्छा होता है। शीतल दूध का सेवन भी हितकर है। आयुर्वेद में ग्रीष्म ऋतु में भैंस का दूध भी मिश्री मिलाकर लेना हितकर बताया है। वहीं सतू का सेवन भी अत्यन्त लाभकारी है, खजूर, मुनक्का, आँवला मुरब्बा गुलकन्द आदि का उपयोग भी अत्यंत उपयोगी है। पका हुआ आम, केला, अंगूर, तरबूज, खरबूज आदि भी गर्मी से राहत प्रदान करते हैं, वहीं ख़स का शर्बत, कैरी का पना भी लू लगने से बचाता है।