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तीसरे विश्वयुद्ध से बचने के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध रोकना जरूरी- धर्मपाल गाँधी

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झुंझुनू, सामाजिक चिंतक व विचारक आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गाँधी ने तृतीय महायुद्ध के मुहाने पर खड़ी दुनियां से रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने का आह्वान किया है। रूस-यूक्रेन युद्ध को शुरू हुए 8 महीने हो गये लेकिन अभी तक किसी भी विकासशील देश या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने युद्ध रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। संयुक्त राष्ट्र के तमाम प्रयासों के बावजूद रूस ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया। सुरक्षा परिषद की तमाम कोशिश दोनों देशों के बीच जंग को रोक पाने में निरर्थक रही है। दो विश्व युद्ध झेलने के बाद, 21वीं सदी में एक देश दूसरे स्वतंत्र देश पर हमला कर देता है और दुनिया के दूसरे देश इसे रोक पाने में नाकाम कैसे रह जाते हैं? यह बहुत ही चिंतनीय विषय है। रूस- यूक्रेन युद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका पर कई सवाल खड़े करता है। यदि यह लड़ाई नहीं रोकी जाती है तो इससे उत्पन्न अस्थिरता यूक्रेन तक सीमित न रहकर पूरे यूरोप को अपने आगोश में ले लेगी, जिसके परिणामों से विश्व का शायद ही कोई देश अछूता रह पायेगा। रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई ने पिछले कई हफ्तों से दुनियां को परेशानी में डाला हुआ है। दुनियां का लगभग हर देश चाहता है कि लड़ाई जल्द से जल्द खत्म हो, लेकिन मैदान-ए-जंग में लाशों का गिरना और लहू का बहना कब रुकेगा, ये या तो सिर्फ ईश्वर जानता है या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन। ऐसी किसी भी स्थिति में दुनियां की नजर संयुक्त राष्ट्र की तरफ होती है, लेकिन इस लड़ाई को रोक पाने में वह पहले के भी कई मौकों से कहीं ज्यादा बेबस नजर आया है। यह पहली बार नहीं हुआ है, जब संयुक्त राष्ट्र दो देशों के बीच शांति स्थापित करने में नाकाम रहा है। इससे पहले भी कई युद्ध संयुक्त राष्ट्र की विफलता की वजह से हुए हैं। सवाल उठा कि संयुक्त राष्ट्र का गठन क्यों हुआ? इस संगठन का मकसद क्या है? इसके गठन के बाद कितनी जंग हो चुकी हैं? पिछले कुछ सालों के उदाहरणों को देखकर पता चलता है कि संयुक्त राष्ट्र नपुंसक हो चुका है, और धीरे-धीरे अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है। यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में और देशों को शामिल नहीं किया गया, साथ ही वीटो के अधिकार को सीमित नहीं किया गया तो इसका भविष्य अनिश्चित नजर आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र में सुधार नहीं किया गया तो महाशक्तियों के टकराव को रोकने के लिए बनाया गया यह संगठन रेत के महल की तरह कभी भी बिखर सकता है। अपने आप को महाशक्ति समझने वाले देश अमेरिका की भूमिका भी संदिग्ध है। अमेरिका दुनिया के कई भौगोलिक क्षेत्रों से अपने कदम खींच रहा है। गत वर्ष हमने उसे अपने क़दम अफ़ग़ानिस्तान से बहुत ही शर्मनाक ढंग से समेटते देखा है; सीरिया और पश्चिम एशिया में वह पहले ही रूस के लिये स्थान रिक्त कर चुका था। अमेरिका विश्व समुदाय का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं है। युद्ध की जड़ें मनुष्य के दिमाग में जमी हुई हैं और युद्ध विश्व शांति को भंग करते रहते हैं। यूक्रेन युद्ध इस अभिशाप का सबसे ताजा उदाहरण है। यह दूसरे युद्धों के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है क्योंकि यह यूरोप में हो रहा है। पूरब से पश्चिम तक यूरोप का भू-राजनीतिक विस्तार कल्पना की उड़ान है, जिसके मुताबिक वह ब्रिटेन से लेकर रूस के प्रमुख हिस्सों तक फैला है। इतिहास पर नज़र डालें तो दोनों विश्व युद्ध और दूसरी कई लड़ाइयां यूरोप से शुरू हुईं हैं। जिन दुश्मनियों की वजह से पहले के युद्ध हुए, वे और मजबूत होकर फिर से उभर सकती हैं। इसलिए, यूक्रेन में जो हो रहा है वह किसी के लिए भी चिंता का कारण होना चाहिए, बशर्ते वह यह न मानता हो कि यह युद्ध नहीं है। अब जो सवाल उभरता है वह भू-राजनीतिक और ऐतिहासिक सवाल है कि क्या युद्ध को स्थान और समय में सीमित किया जा सकता है? आज जब चारों तरफ हिंसा, आतंक का तांडव खेला जा रहा है। आतंकवाद, नक्सलवाद और अतिवाद ने कई नए रूप धारण कर लिए हैं,.ऐसे में भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, महात्मा गांधी के द्वारा बताए गये अहिंसा के मार्ग अत्यंत हीं प्रासंगिक हैं। इस एटमी युग और राष्ट्रों की परस्पर प्रतिद्वंद्विता में मानव जाति के समूल नष्ट की संभावना के कयास भी लगाए जा रहें हैं; ऐसे में अहिंसा और महात्मा गांधी के बताए सिद्धांत अनिवार्य प्रतीत होते हैं। विश्व शांति की स्थापना और परस्पर सौहार्द के आधार पर ही लोकतान्त्रिक मूल्यों की रक्षा की जा सकती है। ऐसे में भारतीय संस्कृति का सिद्धांत “अहिंसा परमो धर्म:” अत्यंत ही महत्वपूर्ण और अनुकरणीय हो जाता है।हमारी भारतीय चिंतन परंपरा में अहिंसा को हृदय परिवर्तन का साधन माना जाता रहा है। अनेक ऐसी कहानियां मौजूद हैं जिनके द्वारा बड़े से बड़े योद्धा का हृदय परिवर्तन हो गया। गांधी जी की मान्यता भी यही थी कि व्यक्ति में भौतिक परिवर्तन करने की अपेक्षा उसके हृदय में परिवर्तन करना आवश्यक है। परिवर्तित हृदय वाला व्यक्ति नये भारत का इतिहास लिखने वाला होगा । गांधी ने अहिंसा के सिद्धांत का अंग्रेज अधिकारियों के सामने भी प्रयोग किया और सफल रहे। इसलिए गांधी ने अहिंसा का केवल सैद्धांतिक विवेचन नहीं किया बल्कि उसका अपने जीवन में व्यवहारिक उपयोग भी किया। जो आज वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर पालन करने योग्य है। विश्व शांति के लिए गाँधी जी के विचार आवश्यक हैं। आधुनिक विश्व चिंतन प्रवाह में गांधी के विचार सार्वकालिक हैं। वे भारतीय उदात्त सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के अग्रदूत भी हैं और सहिष्णुता, उदारता और तेजस्विता के प्रमाणिक तथ्य भी। सत्यशोधक संत भी और शाश्वत सत्य के यथार्थ समाज वैज्ञानिक भी। गत सौ वर्षों के इतिहास पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि संसार के अनके महत्वाकांक्षी राष्ट्रों ने अपने नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना को विकसति करने के लिए शिक्षा की व्यवस्था अपने-अपने निजी ढंगों से की है। इन राष्ट्रों में बालकों को आरम्भ से ही इस बात की शिक्षा दी जाती थी कि- हमारा देश अच्छा अथवा हमारा देश अन्य देशों में श्रेष्टतम है।- इस प्रकार ही शिक्षा प्राप्त करके बालकों में संकुचित राष्ट्रीयता की भावना विकसित हो गई जिसके परिणामस्वरुप विश्व में दो महायुद्ध हुए और आज भी तीसरे महायुद्ध के बदल आकाश में मंडरा रहे हैं। चूँकि युक्त दोनों महायुद्धों के कारण मानव के मानवीय तथा राजनितिक अधिकारों का हनन ही नहीं हुआ अपितु उसे विभिन्न अत्याचारों को भी सहना पड़ा, इसलिए अब संसार के सभी कर्णाधार इस बात का अनुभव करने लगे है कि संकुचती राष्ट्रीयता की अपेक्षा अंतर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास किया जाये जिससे संसार में समस्त नागरिकों में परस्पर दोष, घृणा, ईर्ष्या तथा लम्पटता के स्थान पर प्रेम सहानुभूति , उदारता तथा सदभावना विकसित हो जायें और संसार में सुख शान्ति तथा स्वतंत्रता एवं समानता बनी रहे। रोमां रोलां ने इस तथ्य की पुष्टि करते हुए लिखा है –  भयंकर विनाशकारी परिणाम वाले दो विश्व-युद्धों ने कम से कम यह सिद्ध कर दिया है की क्षुद्र और आक्रमणकारी राष्ट्रीयता के संकीर्ण बंधनों को तोड़ डालना चाहिये तथा प्रेम, दया एवं सहानभूति पर आधारित मानव सम्बन्धों का विकास करने के लिए मानव जाति के स्वतंत्रता संघ का निर्माण किया जाना चाहिये। रूस यूक्रेन युद्ध ने दुनिया के सामने नए संकट खड़े कर दिए हैं, जिससे पूंजीवादी अन्तरविरोधों का शिकार एक देश आज तबाही की कगार पर पहुंच चुका है। आहत मानवता की ह्रदय विदारक तस्वीरों के बहाने साम्राज्यवादी मीडिया तरह-तरह का नेगेटिव (वृतांत) खड़ा कर रहा है। इस शोर में युद्ध के मूल कारण परिदृष्य से गायब हैं। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है और इसकी तपिश पूरे विश्व में महसूस की जा रही है। युद्ध की विभीषिका के गंभीर नतीजे तो देर-सवेर कुछ न कुछ सभी देशों को भुगतना पड़ेगा। विश्व के तमाम देशों को मिलकर रूस- यूक्रेन युद्ध को रोकना चाहिए। हम सभी का दायित्व बनता है कि युद्ध को रोकने के लिए आवाज बुलंद करें। रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत तुरंत शुरू होनी चाहिए नहीं तो यह संकट तीसरे विश्व युद्ध का रूप धारण कर सकता सकता है और वैश्विक तबाही मचा सकता है।रूस और यूक्रेन के बीच जो युद्ध चल रहा है उसमें लाखों लोग मारे जा रहे हैं। हमें रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की समाप्ति के लिए तत्काल बातचीत शुरू करनी चाहिए नहीं तो तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो जाएगा और सब लोग समाप्त हो जाएंगे और हमारी धरती पर कुछ भी नहीं बचेगा। विश्व शांति के लिए रूस- यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए आवाज़ उठायें।

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