झुंझुनूव्यंग्यशिक्षा

वर्तमान में घोषित हो रहे परीक्षा परिणामो के सन्दर्भ में सुरजीत सिंह का व्यंग्य- एक अंक का भूत

पापा अभी तक हैरान हैं। रिजल्ट देखकर अंदर से खुशी की जबर्दस्त लहर उठी, लेकिन चेहरे पर आकर हैरत की तरह फैल गई। समझ नहीं आ रहा, कैसे रिएक्ट करें! बार-बार सीने पर हाथ रखकर आश्वस्त हो रहे हैं, स्साला कहीं हार्ट ना बुरा मान जाए। दिल ही तो है! उनकी हैरानी-परेशानी की वजह यह है कि अभी-अभी रिजल्ट का ऐलान हुआ है और अपेक्षा के विपरीत बेटे का एक अंक कट गया। ओनली वन! अब पता नहीं खुद कटा है कि मिस्टेक से हुआ है। किसी ने इरादतन काटा है कि शरारत की है! फिर भी एक अंक का कटना पता नहीं क्यों असह्य हो रहा है। यह एक अंक नहीं, मानों त्रिशंकु जनादेश वाली विधानसभा में कोई निर्दलीय था, जिसके बिना सरकार बनाना नामुमकिन हो रहा है।
तो क्या एक नंबर से मैरिट वगैरह चूक गई? मुझे कौतुक हुआ।
नो, नो! मैरिट तो मरे शिकार की तरह घर में पड़ी है, टॉप किया है बेटे ने, 500 में से पूरे 499 अंक लाकर कीर्तिमान रचा है। कहते हुए उनकी मूंछों में शिकारी जैसी अकड़ आ गई। मिलने को आसमान फाड़ के ही मिले हैं नंबर। लेकिन हैरत यह हो रही है कि नंबरों की सुनामी में कम्बख्त एक नम्बर कहां अटका रह गया। सोचो, अगर वह भी मिल जाता, तो पूरे 500 होते आज। बच्चा देखा है, कमाल है, कुदरत का करिश्मा। सब गॉड गिफ्ट कहते हैं। इसलिए यही सोच रहे हैं कि जहां इतने सारे नंबर आए हैं, वहां एक नंबर काटा भी कैसे गया होगा! कोई निर्दयी ही होगा। 499 तो शुरू से ही कब्जे में थे। सारी जोर-आजमाइश उसी एक नंबर के लिए ही तो हो रही थी। अब काटकर कौनसी उससे सरकार बना लेगा!
अब तक एक वोट से सरकारें ही गिरती देखी हैं। उन्हें पहली बार एक नंबर मैरिट पर भी भारी लग रहा था। इस एक नम्बर ने दिमाग को ऐसा मथा कि 499 नंबर लाने की खुशी अचानक थोड़ी कम सी हो गई। अब लोग तो यही ताने देंगे न कि बड़े बनते थे पांच सौ वाले! पड़ौसी यह सोचकर खुश हो रहे होंगे कि चलो एक नंबर तो कटा। उन्हें मौका मिल गया खुश होने का। उन्हें लगा, जैसे सब उन्हें चैलेंज दे रहे हैं, हिम्मत है तो वह एक नंबर लाकर दिखाएं! दिखाएं तो! जितना सोचते, उतना अफसोस बढ़ता जाता। सुविधा तो पूरी प्रोवाइड करवाई थी। बेटे का रूटीन भी रोबोट की तरह फिक्स था। कितनी काउंसलिंग के बाद एक-एक सैकंड मैनेज किया था। क्या मजाल कोई कह सके कि बेटे और रोबोट में रत्ती भर भी फर्क है! कभी-कभी वे खुद कन्फ्यूज हो जाते थे कि बेटा है कि रोबोट! जरूर, भूलवश ही सही, यही चूक कर बैठा होगा कहीं। एकाध सैकंड के लिए ही रूटीन गड़बड़ हो गया होगा। मन में तरह-तरह के खयाल आने लगे। आंखें सोचने की मुद्रा में सिुकड़ गई, मगर चूक हुई कहां होगी! उन पर एक अंक का भूत सवार हो उठा। दौरा सा पड़ गया। एकबारगी यह भी भूल गए कि अचीव क्या हुआ है! मन हुआ, इस एक अंक के लिए चांटा जड़ दें। अचानक तमतमाते हुए उठे। फिर 499 का खयाल कर ठिठक गए! एक अंक को भुलाने के लिए बेटे की ओर देखने लगे। बेटे को देखते ही एक अंक याद आने लगा!

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