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बंबई हाईकोर्ट ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 29 ए को बरकरार रखा

उपभोक्ता संरक्षण आयोग में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में भी निर्णय दे सकते हैं सदस्यगण

आमजन को होगा बड़ा फायदा: आयोग में लंबित मामलों के निस्तारण में आयेगी तेजी

झुंझुनूं, बंबई हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 29 ए को चुनौती देने वाली छह अपराधिक रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया है। माननीय उच्च न्यायालय के जस्टिस वी.एम. देशपांडे और जस्टिस अमित बी. बोरकर की बैंच ने धारा 29 ए की वैधता को बरकरार रखते हुए गुलजारी लाल अग्रवाल बनाम लेखाधिकारी (1996) के मामले में हुए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि गुलजारी लाल अग्रवाल बनाम लेखाधिकारी के 1996 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय दिया गया था कि राष्ट्रीय आयोग ने राज्य आयोग के अध्यक्ष के बिना राज्य आयोग के दो सदस्यों द्वारा पारित आदेश को अवैध और शून्य मानने में त्रुटि की है। यानी अध्यक्ष की अनुपस्थिति में भी सदस्य अपना निर्णय दे सकते हैं। गौरतलब है कि न्यायालय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 29ए में कहा गया है कि उपभोक्ता फोरम के समक्ष कार्यवाही केवल इसलिए अमान्य नहीं होगी, क्योंकि उसके सदस्यों के बीच रिक्तियां हैं। इसी धारा को वर्तमान में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 64 में हू ब हू रखा गया है। गौरतलब है कि 17 फरवरी 2020 को याचिका दायर की गई थी, जिसमें जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष के बिना केवल दो सदस्यों के हस्ताक्षर युक्त फैसले को चुनौती दी गई थी, लेकिन माननीय उच्च न्यायालय ने अध्यक्ष की अनुपस्थिति में 2 सदस्यगण द्वारा दिया गया फैसला विधिमान्य व सही माना है।

आमजन पर क्या प्रभाव:

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग झुंझुनूं के सदस्य मनोज मील ने बताया कि माननीय उच्च न्यायालय बम्बई के न्यायाधिपतियों की खंडपीठ के निर्णय से देश के सभी उपभोक्ता आयोग में लंबित प्रकरणों के निस्तारण में तेजी आएगी। अब तक अध्यक्ष महोदय की अनुपस्थिति में उपभोक्ताओं के प्रकरण लंबित पड़े रहते थे। जिला उपभोक्ता आयोग झुंझुनूं में तो शुरुआत से ही समन्वय के साथ परिवादों के त्वरित रूप से निस्तारण की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। उच्च न्यायालय बम्बई के ताजा फैसले व गुलजारी लाल अग्रवाल बनाम लेखाधिकारी के 1996 के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय की रोशनी में उपभोक्ता आयोग को क्रियाशील रखने के लिए अध्यक्ष की उपस्थिति का इंतजार करना उचित नहीं है और उपभोक्ता आयोग हरहाल में कार्यात्मक रखने से ही उपभोक्ताओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 38 (7) के नियम व मूल भावना के अनुसार सरल व सुलभ न्याय मील सकेगी। अब बंबई उच्च न्यायालय के इस फैसले से अध्यक्षगणों के किन्हीं कारणवश मौजूद नहीं होने पर भी सदस्यगण प्रकरणों का निस्तारण कर सकेंगे। हालांकि उच्च न्यायालय यह उम्मीद करता है कि अधिनियम के तहत शिकायतों का निर्णय करते समय जिला फोरम या राज्य आयोग के अध्यक्ष के साथ कार्य करना अधिक उपयुक्त और वांछनीय है। गौरतलब है कि राजस्थान राज्य में 37 जिला उपभोक्ता आयोग काम कर रहे है, जिनमें राज्य सरकार सदस्यों और अध्यक्षगण को नियुक्त करती है।

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