राजस्थान की अरावली पर्वतमाला की सुरम्य घाटियों में स्थित है, यह स्थान शेखावाटी आँचल के सीकर जिले के पाटन उपतहसील मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर है। यहाँ एक गुफा में शिव लिंग स्थापित है, वर्षा ऋतू में गुफा की सभी चट्टानों से सहस्त्र धारा की पानी टपकता है, जिससे शिव लिंग का अभिषेक होता रहता है। चट्टानों से पानी टपकने के कारण ही इस स्थान का नाम टपकेश्वर महादेव पडा। इसकी तलहटी में एक बरसाती नाला है, इसी नाले में एक गुलर का पेड़ है, जिसकी जड़ों से बारह मास पानी निकलता रहता है। गुलर की जड़ों से निकले पानी से बनी छोटी सी तलैया में वन्य जीव अपनी प्यास बुझाते है, बंदरों की यहाँ बहुतायत है। कभी कभार यहाँ बघेरा भी दिखाई दे जाता है, उसी के डर से शाम के बाद क्षेत्र के लोग बाहर नहीं निकलते। बेघेरा दिखने के कारण ही पहाडिया सुर्खियो में रही है।
-स्थान को लेकर कई कहानिया – ऐसे ही मंदिर है नीमकाथाना क्षेत्र के टपकेश्वर, बालेश्वर व गणेश्वर। इन धार्मिक स्थलों की कहानी आदि काल से जुड़ी है। इन तीनों धामों की उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले की मानी जाती हैं। जिनकी स्थापना का वर्ष किसी को ज्ञात नहीं हैं। माना जाता है कि टपकेश्वर की कहानी आमेर रियासत से जुड़ी है। गुफा में स्थित शिविलिंग की स्थापना का वर्ष का पता नहीं है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना राजा अंचल सिंह ने की थी। इस दौरान इस धाम का नाम अंचलेश्वर महादेव मंदिर था। इसका उल्लेख शिवपुराण में भी किया गया। बारिश के मौसम में जब क्षेत्र में अच्छी बारिश होती है तो इस समय पहाड़ी पर स्थित गुफा में भगवान शिव की प्राचीन मूर्तियों का जलाभिषेक बारिश की टपकती बूंदों से होता हैं। इसी कारण वर्तमान में इस धाम का नाम ही टपकेश्वर हो गया।
-बारिश में बहती है नदी
टपकेश्वर धाम की दो पहाडिय़ों के बीच बारिश के दौरान नदी भी बहती है। नदी का नाम कृष्णावती (कासावती) हैं। हजारों श्रद्धालु नदी में स्नान कर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।
-इनका कहना है
महाशिवरात्रि व सावण मास में हजारों श्रद्धालु इन तीनों धामों पर पहुंचकर पवित्र जल से स्नान करते है। वहीं इसी जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। राजवीर सिंह ग्रामीण
बाबूलाल शास्त्री, शिवभक्त- मदिंर में अक्सर आने वाले एक भक्त ने बताया कि गुफा से कुछ दूर एक किले के अवशेष है, जो कभी अचलगढ़ के नाम से जाना जाता था और तोमर राजा अचलेश्वर इस किले पर राज करते थे। शास्त्री के अनुसार इस गुफा में स्थित टपकेश्वर के ज्योतिर्लिंग की महाशिवरात्रि पर्व को लेकर शेखावाटी में श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर होता है। हर तरफ शिव भक्ति की बयार होती है।
महाभारत काल से जुड़ी है तीनों की कहानी
गणेश्वर, टपकेश्वर व बालेश्वर तीर्थ धामों की कहानी के तार महाभारत काल से जुडे् हैं। पांड़वों ने अपना एक वर्ष का अज्ञातवास विराटनगर (बैराठ) में बिताया था। ये तीनों धाम विराटनगर से महज 60 किमी की दूरी में हैं। पांड़वों ने अपने अज्ञातवास के दौरान कुछ समय के लिए अपना निवास इन धामों की पहाडिय़ों को बनाया था।
-गणेश्वर में बहती है गर्म व ठंडी जलधारा
गणेश्वर धाम की कहानी अनोखी है। इस तीर्थ धाम पर गर्म व ठंडी जलधारा बहती है। माना जाता है गणेश्वर में मछली पकडऩे का कांटा मिला था। जो आज गणेश्वर सभ्यता के नाम से विख्यात है।