चिकित्सालेखसीकर

भेड़-बकरियों मे होने वाले रोग और उनसे बचाव का तरीका

         डॉ. सूर्यप्रकाश सीरवी

भेड़-बकरियों में मुख्यतया फड़कीया, कन्टेजियस-इक्थाईमा, पी.पी.आर. और पॉक्स रोग का प्रकोप अधिक पाया जाता हैं|

-:फड़कीया:-

फड़कीया रोग का रोगकारक “क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रीजेंस टाइप-डी” होता हैं| इस रोग में भेड़-बकरी का चक्कर काटना, शरीर में ऐंठन आना, कंपकंपी, सांस लेने में दिक्कत, आफरा आना और दस्त लगना मुख्य लक्षण हैं| पशु को तुरंत वेटरनरी डॉक्टर को दिखाना चाहिए| इस रोग से बचाव हेतु 4 माह से बड़ी भेड़-बकरी का हर वर्ष मानसून से पूर्व टीकाकरण करवा लेना चाहिए|

-: कन्टेजियस-इक्थाईमा:-

कन्टेजियस-इक्थाईमा रोग, पॉक्स फेमिली के पेरापोक्स वंश के वायरस से होता हैं| इस रोग में बुखार, नाक से स्त्राव आना,  होंठो एवं मुहं पर फुंसी होना और पपड़ी जम जाना जैसे लक्षण प्रमुख हैं|  रोग के उपचार के लिए तुरंत वेटरनरी डॉक्टर के पास भेड़-बकरी को ले जाना चाहिए|

-:पी.पी.आर.:-

पी.पी.आर. रोग, पैरामिक्सोविरिडी फेमिली के मोर्बिल्ली वंश के वायरस से होता हैं| इस रोग में मुख्यतया बुखार, नाक से स्त्राव आना, खांसना और न्यूमोनिया जैसे लक्षण प्रमुख हैं| परन्तु कभी कभी मुहं में छाले और पतले खूनी दस्त भी हो जाते हैं| रोग के उपचार के लिए तुरंत वेटरनरी डॉक्टर के पास पशु को ले जाना चाहिए| इस रोग से बचाव के लिए 3 माह से बड़ी भेड़-बकरियों का 3 वर्ष में एक बार टीकाकरण करवाना आवश्यक हैं|

-: पॉक्स-रोग :-

इस रोग का रोगकारक “पॉक्स वायरस” होता हैं| इस रोग में बुखार आना और शरीर के ऊन/बाल रहित भागो पर मवादभरी फुन्सिया और पपडिया हो जाना तथा पॉक्स चिंह बन जाना मुख्य लक्षण हैं| पशु को वेटरनरी डॉक्टर को दिखाकर उपचार करवाना चाहिए| समान्यतया भेड़ो मे यह रोग दिसम्बर-जनवरी माह मे होता हैं| इस रोग से बचाव हेतु 3 माह से बड़ी भेड़ का हर वर्ष दिसम्बर माह में टीकाकरण करवा लेना चाहिए|

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