राजस्थान का ऊन उत्पादन में देश में प्रथम स्थान हैं| राजस्थान में पाई जाने वाली भेड़ों की मुख्य नस्लों में चोकला, मगरा, नाली, सोनाडी, मारवाड़ी, मालपुरा और जैसलमेरी प्रमुख हैं| भेड़ों को रोगों से बचाने के लिए संतुलित आहार तो दिया जाना अत्यंत आवश्यक है ही, साथ में समय-समय पर कृमिनाशन और टीकाकरण करवाना बहुत जरुरी हैं| भेड़ों में मुख्यतया भेड़-माता, फड़कीया और कन्टेजियस-इक्थाईमा रोग का प्रकोप अधिक पाया जाता हैं|
-: भेड़-माता:-
भेड़-माता रोग का रोगकारक “पॉक्स वायरस” होता हैं| इस रोग में बुखार आना और शरीर के ऊन रहित भागो पर मवादभरी फुन्सिया और पपडिया हो जाना तथा पॉक्स चिंह बन जाना मुख्य लक्षण हैं| भेड़ को वेटरनरी डॉक्टर को दिखाकर उपचार करवाना चाहिए| इस रोग से बचाव हेतु 3 माह से बड़ी भेड़ का हर वर्ष दिसम्बर माह में टीकाकरण करवा लेना चाहिए|
-:फड़कीया:-
फड़कीया रोग का रोगकारक “क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रीजेंस टाइप-डी” होता हैं| इस रोग में भेड़ का चक्कर काटना, शरीर में ऐंठन आना, कंपकंपी, सांस लेने में दिक्कत, आफरा आना और दस्त लगना मुख्य लक्षण हैं| भेड़ को तुरंत वेटरनरी डॉक्टर को दिखाना चाहिए| इस रोग से बचाव हेतु 4 माह से बड़ी भेड़ का हर वर्ष मानसून से पूर्व टीकाकरण करवा लेना चाहिए|
-: कन्टेजियस-इक्थाईमा:-
कन्टेजियस-इक्थाईमा रोग, पॉक्स फेमिली के पेरापोक्स वंश के वायरस से होता हैं| इस रोग में बुखार, नाक से स्त्राव आना, होंठो एवं मुहं पर फुंसी होना और पपड़ी जम जाना जैसे लक्षण प्रमुख हैं| रोग के उपचार के लिए तुरंत वेटरनरी डॉक्टर के पास भेड़ को ले जाना चाहिए|
टीकाकरण-कलेण्डर
बीमारी | टीकाकरण का उपयुक्त मौसम/महिना |
भेड़ माता | दिसम्बर |
मुहंपका-खुरपका | मार्च और सितम्बर (वर्ष में दो बार) |
फड़कीया | मानसून से पूर्व अथवा जरुरी होने पर |
लंगड़ा बुखार | मई-जून (मानसून से पूर्व) |
गलगोठूँ | मई-जून (मानसून से पूर्व) |
ब्लैक डिजीज | वर्ष में एक बार कभी भी |
रिंडरपेस्ट | सर्दियों में |
पी.पी.आर. रोग से बचाव के लिए 3 वर्ष में एक बार टीकाकरण करवाना आवश्यक हैं| भेड़ों का हर तीन माह में कृमिनाशन (Deworming) करवाना अत्यंत जरुरी हैं|