चिकित्सालेखसीकर

भेड़ के लिए टीकाकरण कलेण्डर-डॉ. उमेश कुमार प्रजापत

 राजस्थान का ऊन उत्पादन में देश में प्रथम स्थान हैं| राजस्थान में पाई जाने वाली भेड़ों की मुख्य नस्लों में चोकला, मगरा, नाली, सोनाडी, मारवाड़ी, मालपुरा और जैसलमेरी   प्रमुख हैं| भेड़ों को रोगों से बचाने के लिए संतुलित आहार तो दिया जाना अत्यंत आवश्यक है ही, साथ में समय-समय पर कृमिनाशन और टीकाकरण करवाना बहुत जरुरी हैं| भेड़ों में मुख्यतया भेड़-माता, फड़कीया और कन्टेजियस-इक्थाईमा रोग का प्रकोप अधिक पाया जाता हैं|

-: भेड़-माता:-

भेड़-माता रोग का रोगकारक “पॉक्स वायरस” होता हैं| इस रोग में बुखार आना और शरीर के ऊन रहित भागो पर मवादभरी फुन्सिया और पपडिया हो जाना तथा पॉक्स चिंह बन जाना मुख्य लक्षण हैं| भेड़ को वेटरनरी डॉक्टर को दिखाकर उपचार करवाना चाहिए| इस रोग से बचाव हेतु 3 माह से बड़ी भेड़ का हर वर्ष दिसम्बर माह में टीकाकरण करवा लेना चाहिए|

-:फड़कीया:-

फड़कीया रोग का रोगकारक “क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रीजेंस टाइप-डी” होता हैं| इस रोग में भेड़ का चक्कर काटना, शरीर में ऐंठन आना, कंपकंपी, सांस लेने में दिक्कत, आफरा आना और दस्त लगना मुख्य लक्षण हैं| भेड़ को तुरंत वेटरनरी डॉक्टर को दिखाना चाहिए| इस रोग से बचाव हेतु 4 माह से बड़ी भेड़ का हर वर्ष मानसून से पूर्व टीकाकरण करवा लेना चाहिए|

-: कन्टेजियस-इक्थाईमा:-

कन्टेजियस-इक्थाईमा रोग, पॉक्स फेमिली के पेरापोक्स वंश के वायरस से होता हैं| इस रोग में बुखार, नाक से स्त्राव आना,  होंठो एवं मुहं पर फुंसी होना और पपड़ी जम जाना जैसे लक्षण प्रमुख हैं|  रोग के उपचार के लिए तुरंत वेटरनरी डॉक्टर के पास भेड़ को ले जाना चाहिए|

टीकाकरण-कलेण्डर

बीमारी टीकाकरण का उपयुक्त मौसम/महिना
भेड़ माता दिसम्बर
मुहंपका-खुरपका मार्च और सितम्बर (वर्ष में दो बार)
फड़कीया मानसून से पूर्व अथवा जरुरी होने पर
लंगड़ा बुखार मई-जून (मानसून से पूर्व)
गलगोठूँ मई-जून (मानसून से पूर्व)
ब्लैक डिजीज वर्ष में एक बार कभी भी
रिंडरपेस्ट सर्दियों में

 

पी.पी.आर. रोग से बचाव के लिए 3 वर्ष में एक बार टीकाकरण करवाना आवश्यक हैं| भेड़ों का हर तीन माह में कृमिनाशन (Deworming) करवाना अत्यंत जरुरी हैं|

 

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