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स्वदेशी पर सार्थक मंथन

माधव सेवा प्रन्यास दांतारामगढ की प्रेरणा से

दांतारामगढ़(लिखा सिंह सैनी) माधव सेवा प्रन्यास दांतारामगढ की प्रेरणा से खाचरियावास के शिव मंदिर प्रांगण में स्वदेशी विषय पर रोचक विचार-विमर्श हुआ। पचार, खाचरियावास, चक, गोपीनाथपुरा, करड़ तथा उमाडा़ के अठारह विद्वानों ने कोविड 19 की गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए विषय पर गहन विचार विमर्श तथा रोचक बहस की। विषय की रूपरेखा रखते हुए शिक्षक बाबूलाल जाखड़ ने कहा कि वर्तमान में देश की माटी हमसे किस विषय पर सर्वाधिक समर्पण की मांग करती है? इस पर पचार के हरि प्रसाद शर्मा ने कहा कि चीन की हरकतों तथा अन्य देशों में राष्ट्रवाद उदय के कारण हमें दूसरे देशों का मुंह न देखकर स्वदेशी उत्पाद एवं उपभोग पर अधिक ध्यान देना चाहिए। से.नि. प्रधानाचार्य शिव भगवान ने भारतीय संस्कार, विचार, वस्तु तथा हर क्षेत्र में स्वदेशी अपनाने पर बल दिया। शिक्षाविद बाबूलाल हलदुनिया ने स्वदेशी को स्वावलंबन से जोड़ते हुए कहा कि गांव का व्यक्ति यदि कोई वस्तु बना रहा है तो हमें खरीदारी करते वक्त बड़ी और विदेशी कम्पनी में निर्मित माल के बजाय उसे तरजीह देनी चाहिए। तभी कुटिर उद्योग पनपेंगे और ग्रामीण भारत स्वावलंबी बन सकेगा। करङ के इंजीनियर चंद्र शेखर ने स्वदेशी को व्यापक दृष्टिकोण से देखने पर जोर दिया और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक का बहिष्कार कर व देशी मिट्टी के बर्तनों का अधिकाधिक प्रयोग करने की जरूरत बतायी। चक के एड. राजेश ने कहा कि कभी देश और समाज की आन-बान-शान रहे परन्तु आज घुमंतू बने परिवारों को अपनाने, उनकी समस्याओं का निराकरण करने व उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास भी स्वदेशी जागरण ही है। निष्कर्ष निकला कि स्वदेशी को केवल वस्तु खरीद के संकुचित विचार तक न देख कर भारतीय दर्शन, विचार, संस्कार, प्रथाएं, ज्ञान-विज्ञान और यहा तक कि शिवाजी की तरह विदेशी तकनीक का भी स्वदेशी स॔स्करण कर लाभ लेना चाहिए।

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