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मिनी हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध लोहार्गल की 75 किलोमीटर लंबी 24 कोसी परिक्रमा तीसरे पड़ाव की ओर

अरावली की पहाड़ियों में 7 धाराओं में स्नान करने के पश्चात पूर्ण होती है 24 कोसी परिक्रमा

7 धाराओं में स्नान के पश्चात पांडवों की बेड़िया गली थी

लोहार्गल धाम से गोगा नवमी को शुरू हुई थी 24 कोसी मालकेतु बाबा की परिक्रमा

ठाकुर जी की पालकी रविवार को शाकंभरी से रवाना होकर तीसरे पड़ाव शोभावती से खाकी अखाड़ा पहुंची

उदयपुरवाटी, राजस्थान का ऐसा क्षेत्र जहां चारों ओर अरावली की पहाड़ियों से गिरा हुआ है। हम आपको राजस्थान के झुंझुनू, सीकर, नीमकाथाना जिले के मध्य स्थित अरावली की पहाड़ियों में स्थित 24 कोस की परिक्रमा से रूबरू करवाते हैं। जहां हरी भरी वादियों में बहती 7 धाराएं व कुंड है। 24 कोसी परिक्रमा वैष्णो देवी मंदिर जैसी कठिन यात्रा एवं पांडवों से जुड़ी मान्यता है। यह यात्रा झुंझुनू जिले के दक्षिण में स्थित करीब 70 किलोमीटर दूर एवं नीमकाथाना से लगभग 40 किलोमीटर पश्चिम दिशा की ओर तथा सीकर जिले से लगभग 50 किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित मिनी हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध लोहार्गल के मलकेतु बाबा की 24 कोसी परिक्रमा की है। यह 24 कोसी परिक्रमा लगभग 75 किलोमीटर की होती है, जो गोगा नवमी से शुरू होकर अमावस्या को पूर्ण होती है। जो लगभग 5 से 7 दिन में पूर्ण होती है। इस परिक्रमा में श्रद्धालुओं के मुताबिक गोगा नवमी से अमावस्या तक इस यात्रा में करीब 20 से 30 लाख श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है। परिक्रमा मार्ग के दौरान पुलिस के कोई खास बंदोबस्त नहीं होने के बावजूद भी किसी भी श्रद्धालुओं को कोई डर नहीं होता है।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस यात्रा में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं शामिल होती है। रात्रि को पहाड़ियों में ही विश्राम करते हैं। लेकिन आज तक कहीं पर कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। इस यात्रा के दौरान हर कोई हर किसी की मदद करने में जुटा रहता है। परिक्रमा के दौरान अपना जरूरी सामान सर पर लेकर पहाड़ों के मध्य घाटियों में दिन-रात चलते रहते हैं। इस 75 किलोमीटर की पूरी परिक्रमा पूर्ण होती है। सर पर थैला और हाथ में सहारे के लिए लाठियां लेकर मालकेतु बाबा की जयकारे लगाते हुए चलते रहते हैं। इस 24 कोसी परिक्रमा में राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु शामिल होते हैं। अनजान लोगों का एक परिवार की तरह एक दूसरे का ख्याल रखते हुए आगे बढ़ते हैं। परिक्रमा के दौरान यदि कोई साथी या श्रद्धालु पीछे रह भी जाता है तो उसका इंतजार कर साथ लेकर मालकेतु बाबा की जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ते रहते हैं। श्रद्धालुओं के लगातार पहाड़ियों में स्थित सकड़ी पगडंडियों में चढ़ने एवं उतरने से पिंडलियों पर सूजन भी आ जाती है। इस गजब अनुशासन का मैनेजमेंट परिक्रमा में पैदल चलने वाले यात्री ही करते हैं। इस परिक्रमा की बड़ी बात यह है की यात्रा की दौरान श्रद्धालुओं का सफर काफी मायने रखता है, यही वजह है कि अभी तक कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। परिक्रमा की यात्रा में ना कोई जाति पूछता है व ना कोई जाति धर्म की बात करते हैं। सब समानता के साथ इस परिक्रमा को पूर्ण करते हैं। परिक्रमा के दौरान चार-पांच दिन का रास्ता अरावली की पहाड़ियों में सुनसान क्षेत्र से होकर गुजारना पड़ता है। लोहार्गल से शुरू होने वाली इस परिक्रमा में अरावली की वादियों में सात जलधारा मिलती है। जहां पर सभी अपने अपने स्नान करने की बारी का इंतजार करते हैं। यह श्रद्धालुओं को बूस्टर डोज का काम करती है। जिससे थकावट दूर होती है, साथ ही नई एनर्जी भी मिलती है। जिसे श्रद्धालुओं के कदम रुकते नहीं है।

24 कोस की परिक्रमा के दौरान जगह-जगह स्वयं सेवी संस्थाओं के विश्राम स्थल भी बने हुए हैं। जहां भजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। साथ ही श्रद्धालुओं के लिए पानी का इंतजाम भी किया जाता है। स्वयं सेवी संस्थाओं का भी योगदान पूरे परिक्रमा मार्ग में रहता है। जगह जगह पीने के पानी की भामाशाहों द्वारा टैंकर खड़े किए जाते हैं। नहाने के लिए अलग से व्यवस्था की जाती है। बिजली गुल होने की स्थिति में जनरेटर की व्यवस्थाएं होती है। रास्ते में संस्थाओं की ओर से नींबू पानी, शिकंजी, गन्ना जूस व नाश्ते की व्यवस्था की जाती है।

पुरानी मान्यता के अनुसार यह 24 कोसी परिक्रमा पांडवों से जुड़ी हुई है। यह मानता है कि अपने निर्वासन के दौरान पांडव इस इलाके में रहे थे। लोहार्गल के एक कुंड में स्नान करने से पांडवों की लोहे की बेड़ियां गल गई थी। इस जगह का नाम लोहर्गल पड़ गया। पहाड़ियों के बीच उबड़ खाबड़ रास्ते जहां पर हर श्रद्धालु की जुबान पर मालकेतु व भगवान शिव के जयकारे एवं भजन गाने में मसगुल तो कोई झुमने को मजबूर हो जाते हैं। इस डगर पर अपनी मस्ती में मस्त होकर नाचते गाते और जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ते रहते हैं। लाखों की इस भीड़ में पथरीले रास्ते पर पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती है। 24 कोसी परिक्रमा लोहार्गल से शुरू होकर चिराना होते हुए किरोड़ी की घाटी से किरोड़ी धाम प्रथम पड़ाव पर पहुंचती है। यहां से कोट गांव होते हुए सरजू सागर कोट बांध पर स्नान कर शाकंभरी द्वितीय पड़ाव पर पहुंचती है। जहां से तृतीय पड़ाव खाकी अखाड़ा पहुंचकर रात्रि विश्राम के बाद नीम की घाटी चढ़ते हुए रघुनाथगढ़ में रात्रि विश्राम कर अगले दिन रामपुरा नदी से होते हुए अमावस्या के दिन सूर्य कुंड लोहार्गल में स्नान कर अपने घर की ओर प्रस्थान करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें की एकादशी एवं द्वादशी से लेकर अमावस्या तक श्रद्धालुओं में काफी उत्साह है के साथ लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ एवं जनसैलाब उमड़ पड़ता है। जहां पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती है। परिक्रमा के दौरान 7 जलधारा लोहार्गल, किरोड़ी, शाकंभरी, नाग कुंड, टपकेश्वर, नीमड़ी की घाटी सहित अन्य जलधारों में स्नान कर अपनी पांच से सात दिवसीय परिक्रमा पूर्ण करते हैं।

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