मीराबेन, क्रांतिकारी शांति घोष व वीरांगना झलकारी बाई और प्रथम महिला चिकित्सक रुक्माबाई की
झुंझुनू, आदर्श समाज समिति इंडिया के तत्वाधान में संस्थान के कार्यालय सूरजगढ़ में स्वाधीनता आंदोलन में महात्मा गांधी की सहयोगी रही महान सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी मीरा बेन की जयंती व शहीद भगत सिंह की मौत का बदला अंग्रेज अधिकारी को गोली मारकर लेने वाली क्रांतिकारी शांति घोष की जयंती मनाई। इस मौके पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना झलकारी बाई और प्रथम महिला चिकित्सक रुक्माबाई राउत की जयंती भी मनाई। आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गांधी ने स्वतंत्रता सेनानी मीराबेन उर्फ मेडलिन स्लेड के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मीरा बेन महात्मा गांधी की अनुयायी थीं। वह गांधी जी के आदर्शों, दर्शन और कार्य करने के तरीकों से बहुत प्रभावित थीं। उन्होंने जातिगत भेदभाव, असमानता छुआछूत के खिलाफ और महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में काम किया था। उन्होंने कृषि, कुटीर, उद्योग और शिक्षा के विकास को अधिक महत्व दिया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए काम किया था। महात्मा गांधी के विचारों ने दुनिया में कई लोगों को अपना अनुयायी बनाया है। महात्मा गांधी के अनुयायी हर लड़ाई में उनके साथ खड़े रहे और उनके साथ जेल भी गये। इन अनुयायियों में से एक थी ‘मीरा बहन’ जिनका असली नाम मेडलिन स्लेड था। मीरा बहन को “भारत की महिला” के रूप में भी जाना जाता था। मीरा नाम उन्हें महात्मा गांधी जी ने दिया था। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मीरा बेन का जन्म 22 नवंबर 1892 में इंग्लैंड में हुआ था। उनका जन्म एक ब्रिटिश नौसेना अधिकारी के घर हुआ था। गांधी के जीवन और दर्शन के बारे में पढ़ने के बाद वह उनके विचारों से प्रभावित होकर भारत आ गई। स्वाधीनता आंदोलन में मीराबेन ने कई सम्मेलनों और विरोध प्रदर्शनों में गांधी जी का समर्थन किया। उन्होंने लंदन में उनके साथ गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लिया। वह आजादी के बाद की कई घटनाओं का हिस्सा भी रहीं। 1946 में, मीराबेन को कृषि उत्पादन के विस्तार के अभियान में सहायता के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का मानद विशेष सलाहकार नियुक्त किया गया। उन्हें मूलदासपुर में किसान आश्रम, ऋषिकेश के पास पशुलोक आश्रम, भिलंगना में गोपाल आश्रम और बापू ग्राम नामक बस्ती स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। मीरा बहन वर्धा, महाराष्ट्र में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना के लिए मुख्य प्रेरणा थीं। 1982 में देश के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार पद्म विभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया। अंग्रेज अधिकारी को गोली मार्कर शहीद भगत सिंह की मौत का बदला लेने वाली क्रांतिकारी शांति गोश्त के बारे में धर्मपाल गाँधी ने बताया कि शांति घोष भारत के स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी वीरांगना थी। उनका जन्म 22 नवंबर 1916 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था। साल 1931 में दिसम्बर की 14 तारीख को शांति अपनी एक और सहपाठी सुनीति चौधरी के साथ एक ब्रिटिश अफ़सर और कोमिल्ला के जिला मजिस्ट्रेट चार्ल्स जेफरी बकलैंड स्टीवंस के कार्यालय में पहुंची। उन्होंने इस बात का बहाना दिया कि वे एक पेटीशन फाइल करने आई हैं। जब अधिकारी उनके कागजात देखने लगे तो उन्होंने अपनी शॉल के नीचे से पिस्तौल निकाली और उन्हें गोली मार दी। इससे कार्यालय में चारों तरफ अफरा-तफरी मच गयी। शांति और सुनीति को तुरंत पकड़ लिया गया। इस घटना ने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य बल्कि पुरे देश को हिला कर रख दिया। ब्रिटिश सरकार ने उनकी कम उम्र की वजह से उन्हें फाँसी की जगह काले पानी की सजा दी। पर इन दोनों देशभक्तों ने हँसते-हँसते छोटी-सी उम्र में जेल की यातनाएं सही। साल 1937 में महात्मा गाँधी व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के प्रयासों से आख़िरकार शांति घोष को जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके साथ ही वे स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रीय रहीं। उन्होंने प्रोफ़ेसर चितरंजन दास से शादी की। वे 1952-62 और 1967-68 में पश्चिम बंगाल विधान परिषद में कार्यरत रहीं। अपनी वीरता और शौर्य का परचम लहराने वाली शांति घोष के हम भारतवासी सदैव ऋणी रहेंगे। वीरांगना झलकारी बाई के संबंध में सुनील गांधी ने बताया कि झलकारी बाई झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थी। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थी, इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वो रानी के वेश में भी युद्ध करती थी। अपने अंतिम समय में भी वो रानी के वेश में युद्ध करते हुए अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गई और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झांसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है।
“लक्ष्मीबाई का रूप धार, झलकारी खड़ग संवार चली।
वीरांगना निर्भय लश्कर में, शस्त्र अस्त्र तन धार चली॥”
इस मौके पर देश की प्रथम महिला चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता रुक्माबाई राउत को भी उनकी जयंती पर याद किया। रुक्माबाई को भारत की पहली अभ्यास करने वाली महिला डॉक्टर होने का ख़िताब प्राप्त है। हालांकि आनंदी गोपाल जोशी डॉक्टर के रूप में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला थीं, लेकिन उन्होंने कभी भी प्रैक्टिस नहीं की। अपनी शिक्षा के बाद वे टुबरक्लोसिस की बीमारी के साथ भारत लौटीं। इसी के चलते अपनी आसमयिक मौत के कारण वे कभी भी डॉक्टर के रूप में अभ्यास नहीं कर पायीं। ब्रिटिश भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाले प्रेरक लोगों में से रुक्माबाई एक थीं। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करने वाले सामाजिक सम्मेलनों और रीति-रिवाजों के प्रति उनकी अवज्ञा ने 1880 के रूढ़िवादी भारतीय समाज में बहुत से लोगों को हिलाकर रख दिया और उनकी इस लड़ाई ने ही 1891 में पारित होने वाले ‘सहमति की आयु अधिनियम’ का नेतृत्व किया। उन्होंने असाधारण साहस और दृढ़ संकल्प के साथ कई वर्षों तक अपमान सहन किया। रुक्माबाई आनेवाले सालों में कई अन्य महिलाओं को डॉक्टर बनने और सामाजिक कार्य करने के लिए प्रेरणा देती रहीं। 1880 के दशक में जब औरतों को बोलने तक का अधिकार नहीं मिलता था! पर ऐसे समय में भी एक बेबाक और दृढ संकल्पी महिला ने वह कर दिखाया, जो कोई सोच भी नहीं सकता था। मात्र 11 वर्ष की उम्र में शादी के बंधन में बांध दिये जाने वाली रुक्माबाई राउत ने अपने पति भिकाजी के ‘वैवाहिक अधिकार’ के दावे के खिलाफ एक प्रतिष्ठित कोर्ट में केस लड़ा। यही केस आगे चलकर, साल 1891 में ‘सहमति की आयु अधिनियम’ का आधार बना। रुक्माबाई वो शख्सियत थीं, जिनका मुकदमा 1884 के आसपास पूरे देश में चर्चित हुआ। उनके पति ने उन्हें घर बुलाने के लिए अदालत की शरण ली लेकिन उन्होंने उनके पास जाने की बजाय डॉक्टरी की पढ़ाई करने का फैसला किया। और ऐसा करने पर वो देश की पहली प्रैक्टिसिंग डॉक्टर बनीं। इस मौके पर आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गांधी, रणवीर सिंह ठेकेदार, गौरीशंकर सैनी, सतीश कुमार, सुनील गांधी, बृजेश उर्फ बबलू, अंजू गांधी, दिनेश आदि अन्य लोग मौजूद रहे।